आईआईटी-मद्रास द्वारा इनक्यूबेटेड अग्निकुल ने लॉन्च किया दुनिया का पहला 3D प्रिंटेड सेमिक्रायोजेनिक रॉकेट इंजन

आईआईटी-मद्रास द्वारा इनक्यूबेटेड अग्निकुल ने लॉन्च किया दुनिया का पहला 3D प्रिंटेड सेमिक्रायोजेनिक रॉकेट इंजन

आईआईटी-मद्रास का अभिनव प्रयास: अग्निकुल कॉसमॉस

आईआईटी-मद्रास द्वारा इनक्यूबेटेड स्टार्टअप अग्निकुल कॉसमॉस ने इतिहास रचते हुए दुनिया का पहला 3D प्रिंटेड सेमिक्रायोजेनिक रॉकेट इंजन 'अग्निबाण' का सफल प्रक्षेपण किया। यह प्रक्षेपण श्रीहरिकोटा से किया गया, और इसे देश में निर्मित और डिजाइन किया गया था। इस परियोजना का नेतृत्व प्रोफेसर सत्यनारायण आर. चक्रव्रती, श्रीनाथ रविचंद्रन, मोइन एसपीएम, सरन्या पेरियास्वामी और उमामहेश्वरी के. ने किया।

अग्निबाण: एक अनूठा रॉकेट इंजन

अग्निबाण एक दो-चरणीय वाहन है जो 300 किलोग्राम तक का भार 700 किमी की ऊँचाई तक ले जा सकता है। इस रॉकेट इंजन को सेमिक्रायोजेनिक इंजन द्वारा संचालित किया गया और इसमें गैस और लिक्विड ईंधन दोनों का उपयोग किया गया। यह इंजन विशेष तरीके से एक ही टुकड़े में 3D प्रिंटेड था, जिससे इसके उत्पादन में आसानी हुई और इसके प्रदर्शन में सुधार हुआ।

इसरो और अधिकारियों का समर्थन

इसरो और अधिकारियों का समर्थन

इस ऐतिहासिक प्रक्षेपण को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का भी समर्थन प्राप्त था। इसरो के अध्यक्ष एस. सोमनाथ, इन-स्पेस के अध्यक्ष पवन के. गोयनका और केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने अग्निकुल को इस महत्वपूर्ण उपलब्धि पर बधाई दी। अग्निकुल के इस प्रयास ने पहली बार योजित निर्माण के माध्यम से एक नियंत्रित सेमिक्रायोजेनिक लिक्विड इंजन का उड़ान परीक्षण दिखाया।

प्रक्षेपण के महत्वपूर्ण पहलू

यह प्रक्षेपण अग्निकुल के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण था। यह न केवल स्वदेशी तकनीकों का प्रदर्शन था, बल्कि इससे महत्वपूर्ण उड़ान डेटा भी प्राप्त हुआ, जिससे अग्निकुल के भविष्य के प्रक्षेपणों के लिए प्रणालियों की कार्यक्षमता सुनिश्चित की जा सके। अग्निकुल अब 2025 वित्तीय वर्ष के अंत तक एक ऑर्बिटल मिशन को अंजाम देने की योजना बना रहा है और 2025 कैलेंडर वर्ष से नियमित उड़ानों के साथ ग्राहकों के साथ काम कर रहा है।

अग्निकुल का भविष्य

अग्निकुल का भविष्य

अग्निकुल का यह प्रयास देश में स्पेस टेक्नोलॉजी में एक नया मोड़ साबित हो सकता है। इस प्रक्षेपण ने यह साबित कर दिया कि भारत में भी इनोवेशन और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अद्वितीय कार्य किया जा सकता है। यह देश में स्पेस टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में नए अवसरों को जन्म देगा और युवा वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा।

स्वदेशी प्रतिभा और आत्मनिर्भरता

इस प्रक्षेपण ने भारतीय वैज्ञानिक प्रतिभा और आत्मनिर्भरता को एक नया आयाम दिया है। निकट भविष्य में ऐसे और भी प्रक्षेपण देखने को मिल सकते हैं, जो भारत को एक अग्रणी स्पेस तकनीकी राष्ट्र बना सकते हैं। अग्निकुल ने इसरो के साथ मिलकर इस परियोजना को सफलतापूर्वक पूरा किया है, जिससे स्वदेशी प्रतिभाओं का समर्थन और बढ़ावा मिला है।

नई संभावनाओं का आगाज

अग्निबाण के सफल प्रक्षेपण ने भारतीय छात्रों और नवोन्मेषकों के लिए नई संभावनाओं के द्वार खोले हैं। यह घटना दिखाती है कि कैसे उच्च शिक्षा संस्थान और स्टार्टअप्स मिलकर बड़े कार्य कर सकते हैं। इस सफल प्रक्षेपण से यह भी साफ हो गया है कि भारतीय वैज्ञानिक समुदाय किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए तैयार है।

अग्निकुल कॉसमॉस के इस महत्वाकांक्षी प्रयास ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान को नई ऊंचाइयां दी हैं और देश में वैज्ञानिक उन्नति के लिए एक नए युग की शुरुआत की है। आईआईटी-मद्रास और अग्निकुल कॉसमॉस का यह नवीनतम प्रयास भारतीय स्पेस टेक्नोलॉजी में एक मील का पत्थर साबित होगा।

13 टिप्पणि

Avdhoot Penkar
Avdhoot Penkar
जून 3, 2024 AT 13:18

ye to bhai 3D print kiya hai?? 😱 maine to printer se card bhi nahi print kiya tha... ye rocket ban gaya??

Akshay Patel
Akshay Patel
जून 5, 2024 AT 10:51

Bas itna hi kya kar sakte ho? ISRO ne 10 saal pehle hi kuch aisa try kiya tha, lekin tum log sirf hype karte ho. India ka koi bhi project abhi tak NASA ke level pe nahi pahuncha. Yeh bas ek experimental toy hai.

Raveena Elizabeth Ravindran
Raveena Elizabeth Ravindran
जून 5, 2024 AT 13:58

3D printed engine?? Really?? Kya ye matlab hai ki kisi ne ghar pe printer se rocket bana diya?? 😅 maine to chai ka cup bhi nahi print kiya tha... kya ye sab sach hai ya phir fake news??

Krishnan Kannan
Krishnan Kannan
जून 5, 2024 AT 23:16

Ye to badi baat hai. 3D printing se engine banana matlab design aur manufacturing dono me efficiency aagyi. Kya ye engine ko rebuild karna bhi asaan ho jayega? Kya iski maintenance cost bhi kam hogi? Kuch technical details batao agar koi janta ho.

Dev Toll
Dev Toll
जून 6, 2024 AT 11:18

Interesting. Not sure if it's a game changer yet, but it's a step. Hope they scale it up without burning down the lab.

utkarsh shukla
utkarsh shukla
जून 7, 2024 AT 16:07

BHAARAT KI JAI!! 🇮🇳🇮🇳🇮🇳 YEH TOH DUNIYA KI PEHLI BAAT HAI! 3D PRINTED ROCKET ENGINE! ISRO KO BHI BHIJ DO BHAIDOOO! YEH HUMARE YUVA VIGYANI HAIN! KABHI NAHI SOCHA THA KI HUM INTELLIGENCE KI BHI DUNIYA ME LEAD KAR SAKTE HAIN! YE HAI REAL INDIAN POWER!

Amit Kashyap
Amit Kashyap
जून 9, 2024 AT 12:24

ye sab kuchh ISRO ki galti hai ki unhone kuchh nahi kiya... ab ye chote startup ne kardiya... par bhai humare desh me koi bhi kuchh nahi kar sakta jab tak government support nahi hota... phir bhi badhiya hai!

mala Syari
mala Syari
जून 10, 2024 AT 16:35

3D printed? How quaint. In Europe, they’ve been doing this since 2018. And they didn’t need a government press release to announce it. This is just... basic. 🤷‍♀️

Kishore Pandey
Kishore Pandey
जून 12, 2024 AT 02:57

The technical specifications provided in the article are insufficient to validate the claim of being the 'world's first'. Without peer-reviewed data, performance metrics, or independent verification, this remains an unverified assertion. One must exercise caution before celebrating unproven claims.

Kamal Gulati
Kamal Gulati
जून 13, 2024 AT 12:06

Kya hum sab apni zindagi mein kuch bhi nahi kar paaye? Yeh ladke IIT se nikle aur rocket bana diya... hum toh office mein chai peete rehte hain... kya hum sach mein insaan hain? Ya bas ek jeevan ka bhojan? 🤔

Atanu Pan
Atanu Pan
जून 15, 2024 AT 01:57

Nice work guys. Hope this opens more doors for students. IIT Madras has always been quiet but doing big things. Keep going.

Pankaj Sarin
Pankaj Sarin
जून 17, 2024 AT 01:06

3d printed rocket engine?? lol who cares if its first or not... the real question is did it even reach orbit?? or just blew up in the lab again?? 🤷‍♂️

Mahesh Chavda
Mahesh Chavda
जून 17, 2024 AT 07:13

The media has once again turned a modest engineering milestone into a nationalistic spectacle. One must wonder whether the real innovation lies in the technology... or in the PR team.

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