ममूटी की 'टर्बो' फिल्म की समीक्षा: कमजोर पटकथा ने किया दमदार प्रदर्शन का मजा किरकिरा

ममूटी की 'टर्बो' फिल्म की समीक्षा: कमजोर पटकथा ने किया दमदार प्रदर्शन का मजा किरकिरा

मलयालम सिनेमा के प्रसिद्ध अभिनेता ममूटी की नई फिल्म 'टर्बो' का लंबे समय से इंतजार हो रहा था। वाइसाख द्वारा निर्देशित यह फिल्म अपनी अनूठी कहानी और दमदार प्रदर्शन के लिए उम्मीदों के केंद्र में थी। लेकिन, जब फिल्म रिलीज हुई तो इसकी पटकथा के कारण यह उम्मीदें पूरी तरह पूरी नहीं हो पाईं।

फिल्म की कहानी 'टर्बो' जोस, एक ऐसा चरित्र जो हमेशा लड़ाई-झगड़े में पड़ता है, के इर्द-गिर्द घूमती है। ममूटी ने इस किरदार को बखूबी निभाया है, लेकिन पटकथा की कमजोरी के चलते उनका मजबूत प्रदर्शन भी फिल्म को पूरी तरह से खड़ा नहीं कर पाया। फिल्म की मुख्य खलनायक वेट्रिवेल शान्मुग सुन्दरम, जो एक बड़ी बैंकिंग स्कैम में शामिल है, भी दर्शकों को प्रभावित करने में असफल रहा है।

ममूटी का दमदार प्रदर्शन

इस फिल्म में ममूटी ने अपना शानदार अभिनय कौशल प्रदर्शित किया है, जो हमेशा की तरह प्रशंसनीय है। उन्होंने अपने किरदार को वास्तविकता के करीब लाने की पूरी कोशिश की है, और उनकी हरकतें और हाव-भाव बहुत ही प्रभावशाली रहे हैं। फैंस ने भी उनके इस नए अवतार को खूब सराहा है। हालांकि, यह कहना गलत नहीं होगा कि अगर पटकथा में थोड़ा और ध्यान दिया जाता, तो यह फिल्म एक बेहतरीन हिट साबित हो सकती थी।

फिल्म के अन्य कलाकार जैसे अंजना जयप्रकाश, राज बी. शेट्टी, बिंदु पनिकर, और शबरीष वर्मा ने भी अपनी भूमिकाओं को पूरी कर्तव्यनिष्ठा के साथ निभाया है। उनकी अदाकारी फिल्म के बाकी कमजोर पहलुओं को थोड़ा ढांपने में सफल रही है। लेकिन, फिर भी, कहानी के मुख्य तत्वों की कमी ने इन्हें लिमिटेड कर दिया।

क्लिशे और कमजोर पटकथा

क्लिशे और कमजोर पटकथा

फिल्म की शुरुआत बहुत ही जबरदस्त होती है और शुरुआती कुछ मिनटों में दर्शकों को बड़ी सहूलियत से बांध लेती है। लेकिन जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, उसकी चकाचौंध कम होती जाती है। मिधान मैनुअल थॉमस द्वारा लिखी गई पटकथा फिल्म के मूल तत्व को पकड़ने में नाकामयाब रही है।

फिल्म में इस्तेमाल किए गए क्लिशे और पुरानी कहानियों की ढेरों समानताएं दर्शकों को जल्दी ही उदासीन बनाने लगती हैं। फिल्म का मुख्य तापमान उसकी पहली भव्यता के बाद जल्द ही ठंडा हो जाता है, और आश्चर्य की कमी दर्शकों की रुचि कम कर देती है। इस वजह से फिल्म का लंबा रनटाइम भी बोझिल महसूस होने लगता है।

एक्शन सीक्वेंस और चेज़ सीन

एक्शन सीक्वेंस और चेज़ सीन

हालांकि फिल्म में एक्शन सीक्वेंस और चेज़ सीन का महानुभाव काफी बेहतरीन है, जो कि फिल्म की कुछ अच्छी पक्षों में से एक है। तकनीकी दृष्टि से ये दृश्य बहुत ही अच्छी तरह से क्राफ्ट किए गए हैं, और उन्होंने ममूटी के चरित्र को और भी जीवंत बना दिया है। इन दृश्यों के कारण ही फिल्म में कुछ जान दिखाई देती है।

ऐसा नहीं है कि फिल्म में कोई अच्छा हिस्सा नहीं है, बल्कि फिल्म में कुछ पल ऐसे हैं जो सचमुच उत्साहवर्धक हैं। फिल्म 'टर्बो' एक प्रयास से अधिक एक अवसर हो सकती थी, लेकिन इसकी पटकथा ने इसे रोक दिया है।

फिल्म 'मॉन्स्टर' से थोड़ी बेहतर

फिल्म 'मॉन्स्टर' से थोड़ी बेहतर

यह जरूर है कि फिल्म 'टर्बो', वाइसाख की पिछली फिल्म 'मॉन्स्टर' से थोड़ी बेहतर है। जिन दर्शकों ने 'मॉन्स्टर' देखा है, वे निश्चित रूप से इसे एक उन्नति के रूप में देख सकते हैं। लेकिन, सुधार की दिशा में यह कदम काफी छोटा है क्योंकि फिल्म नवाचार और ताजगी की कमी से जूझ रही है।

निष्कर्ष

अंततः कहा जा सकता है कि 'टर्बो' में अधिक संभावनाएं थीं, जो कमजोर पटकथा और पुरानी शैली के कारण पूरी तरह से प्रकट नहीं हो पाईं। ममूटी का अदाकारी का जौहर, एक्शन सीक्वेंस, और कुछ अन्य परफॉर्मेंस ने इसे थोड़ा संभाला जरूर है, लेकिन कहानी की कमजोरी इसे बांधने में असफल रही। अगर वाइसाख और उनकी टीम ने कहानी और पटकथा पर थोड़ी और मेहनत की होती, तो 'टर्बो' एक उत्कृष्ट फिल्म साबित हो सकती थी।

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