3D प्रिंटेड रॉकेट इंजन: कैसे बनता है भविष्य का शक्ति स्रोत
आपने कभी सोचा है कि अंतरिक्ष यान के इंजन को बनाने की लागत इतनी बड़ी क्यों होती है? अब 3डी प्रिंटिंग इस सवाल का जवाब देती है। ये तकनीक धातु या कंपोजिट को परत‑दर‑परत जोड़ती है, जिससे जटिल भाग एक बार में बन जाते हैं। कम सामग्री खर्च और तेज़ उत्पादन टाइम से लॉन्च की कीमत घटती है।
एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग की बुनियादी बातें
एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग, यानी 3डी प्रिंटिंग, में कंप्यूटर मॉडल को डिजिटल फाइल से सीधे मशीन तक भेजते हैं। फिर लेज़र या इलेक्ट्रॉन बीम धातु पाउडर को ढालते हुए घटकों को बनाते हैं। पारंपरिक मिलिंग या वेल्डिंग की तुलना में सटीकता ज्यादा होती है और डिजाइन में सीमाएँ नहीं रहतीं। उदाहरण के तौर पर, जटिल नॉज़ कॉन या थर्मल प्रोटेक्टिव लेयर एक ही भाग में तैयार हो जाती है, जिससे असेंबली समय घट जाता है।
इस प्रक्रिया की सबसे बड़ी खासियत यह है कि सामग्री का लगभग 90 % उपयोग होता है। पुराने तरीकों में कचरा बहुत बनता था, जबकि प्रिंटर सिर्फ़ ज़रूरत के अनुसार ही पाउडर लगाता है। यही कारण है कि कंपनियाँ इस तकनीक को अपनाकर लागत कम कर रही हैं और छोटे‑छोटे स्टार्ट‑अप भी अब अपना रॉकेट बना सकते हैं।
भारत में 3D प्रिंटेड रॉकेट इंजन के प्रयोग
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने पिछले साल से ही 3डी प्रिंटिंग पर कई प्रयोग शुरू किए हैं। पहले उन्होंने छोटे थ्रस्टर को प्रोटोटाइप किया, अब बड़े क्लासिक इंजन की मुख्य भागों को भी प्रिंट कर रहे हैं। इसका फायदा यह है कि रॉकेट लॉन्च के लिए आवश्यक टूल्स और मोल्ड्स बनाना नहीं पड़ता, इसलिए विकास चक्र तेज़ हो जाता है।
स्टार्ट‑अप कंपनी जैसे “Skyroot” ने पहले ही 3डी प्रिंटेड इंजन का उपयोग करके सैटलाइट लांच किया है। उन्होंने बताया कि परंपरागत तरीके से बनाम प्रिंटिंग में लागत लगभग 40 % कम आई। इससे छोटे देशों या निजी कंपनियों के लिए स्पेस एक्सप्लोरेशन अब वाकई संभव हो रहा है।
यदि आप इस तकनीक को अपनाने की सोच रहे हैं, तो सबसे पहले एक भरोसेमंद 3डी प्रिंटर चुनें जो टाइटेनियम या इनकोनेल जैसे हाई‑टेम्परेचर एलॉय सपोर्ट करता हो। फिर अपने डिजाइन को सिमुलेशन सॉफ़्टवेयर में टेस्ट करें – यह चरण फॉल्ट्स पकड़ने और सामग्री की थर्मल स्ट्रेस समझने के लिए जरूरी है। अंत में, प्रोटोटाइप बनाकर छोटे बर्न‑टेस्ट करना न भूलें; इससे वास्तविक लॉन्च से पहले ही सुधार का मौका मिलता है।
समझे कि 3डी प्रिंटेड रॉकेट इंजन सिर्फ़ एक हाई‑टेक गैजेट नहीं, बल्कि स्पेस उद्योग में लागत‑प्रभावी बदलाव लाने वाला कदम है। यदि आप इंजीनियरिंग या व्यवसायिक तौर पर इस क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहते हैं, तो अभी से सीखें कि कैसे CAD मॉडल को प्रिंटर फ़ाइल में बदलते हैं और किस सामग्री की विशेषताएँ आपके मिशन के लिये सबसे बेहतर होंगी।
अंत में एक बात याद रखें: तकनीक जितनी उन्नत होगी, उतना ही प्रयोगशील होना पड़ेगा। इसलिए छोटे‑छोटे टेस्ट और फीडबैक लूप को अपनाकर आप 3डी प्रिंटेड रॉकेट इंजन की पूरी क्षमता निकाल सकते हैं। इस दिशा में आगे बढ़ें, क्योंकि अंतरिक्ष का भविष्य अब आपके हाथों में है।

आईआईटी-मद्रास द्वारा इनक्यूबेटेड अग्निकुल ने लॉन्च किया दुनिया का पहला 3D प्रिंटेड सेमिक्रायोजेनिक रॉकेट इंजन
आईआईटी-मद्रास द्वारा इनक्यूबेटेड स्टार्टअप अग्निकुल कॉसमॉस ने दुनिया का पहला 3D प्रिंटेड सेमिक्रायोजेनिक रॉकेट इंजन 'अग्निबाण' श्रीहरिकोटा से सफलतापूर्वक लॉन्च किया। घरेलू स्तर पर डिज़ाइन और निर्मित इस रॉकेट इंजन ने घरेलू और इन-हाउस प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन किया। इस ऐतिहासिक प्रक्षेपण को इसरो और विभिन्न अधिकारियों ने सराहा।