
बलि प्रतिप्रदा 2024: पौराणिक कथा और धार्मिक महत्व
जब साल का सबसे बड़ा त्योहार दीवाली अपने शबाब पर पहुंचता है, उसी समय Bali Pratipada 2024 का पर्व अलग छटा लिए आता है। इस बार यह तिथि 2 नवंबर 2024 को पड़ रही है। कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की पहली तिथि यानी प्रतिप्रदा, राजा बलि के अद्भुत त्याग की याद दिलाती है। देवी-देवताओं से लेकर आम भक्तों तक, हर कोई इस दिन राजा बलि की कथा को याद करता है। माना जाता है कि भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर बलि को पाताल लोक भेजा था। लेकिन विष्णु जी ने राजा बलि को वचन दिया था कि साल में एक दिन वे पृथ्वी पर जरूर आएंगे। बस, उसी आगमन का उत्सव है बलि प्रतिप्रदा।
इस पर्व से जुड़ी कहानी का रंग सबसे ज्यादा महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक के घरों में घुला होता है। ये परंपरा सिर्फ कथा सुनने-सुनाने या आरती करने तक ही सीमित नहीं है; बल्कि इसमें स्नेह, त्याग और परिवार का महत्व भी रचा-बसा है। बलि और उनकी पत्नी विंध्यावली के बीच का संबंध भी इस दिन खास तौर पर याद किया जाता है, जो वैवाहिक प्रेम-विश्वास का कच्चा-पक्का धागा मजबूत करता है।
पूजा की विधि, खास मुहूर्त और परंपराएं
अब बात करते हैं इस साल के पूजा मुहूर्त की। 2 नवंबर को प्रातःकाल 6:34 से 8:46 बजे और संध्याकाल 3:23 से 5:35 बजे का समय पूजा के लिए सबसे शुभ माना गया है। वैसे बलि प्रतिप्रदा की तिथि 1 नवंबर की शाम 6:16 बजे शुरू होकर 2 नवंबर की रात 8:21 बजे तक रहेगी। ज्यादातर घरों में लोग सुबह पूजा करना पसंद करते हैं, लेकिन कामकाजी परिवार आराम से शाम के समय भी पूजा कर सकते हैं।
पारंपरिक तौर पर पूजा के लिए घर में रंगोली बनाई जाती है, जगह-जगह दीये लगाए जाते हैं और फूलों की सजावट होती है। बलि राजा की प्रतिमा या तस्वीर को सम्मान के साथ घर में रखा जाता है। पूजा की थाली में अक्षत, नारियल, मिठाई, फूल और सिंदूर रखते हैं। कहते हैं कि बलि राजा को पुष्प और मिठाई चढ़ाने से साल भर घर में सुख-शांति बनी रहती है। पूजा के बाद परिवार के लोग साथ बैठकर पारंपरिक पकवान खाते हैं – पूरणपोली, बेसन लड्डू, और खासतौर पर महाराष्ट्र में बनाई जाने वाली कुरकुरी मिठाइयां इस मौके पर खूब बनती हैं।
कुछ जगहों पर बलि प्रतिप्रदा और गोवर्धन पूजा एक साथ मनाई जाती है, लेकिन इनके मूल भाव में फर्क है। गोवर्धन पूजा में श्रीकृष्ण की लीला और गोवर्धन पर्वत की पूजा मुख्य है, जबकि बलि प्रतिप्रदा में राजा बलि के आदर्शों को प्राथमिकता दी जाती है। यही वजह है कि इस दिन लोग झगड़े-मनमुटाव भूलकर फिर से नए रिश्तों की शुरुआत करते हैं।
- राजा बलि की पूजा से धन, स्वास्थ्य और सौभाग्य की कामना की जाती है।
- महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक में इस दिन को नए साल की शुरुआत के रूप में भी मनाते हैं।
- इस मौके पर विवाहित महिलाएं पति की लंबी उम्र और घर की समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं।
- पौराणिक मान्यता है कि बलि राजा के स्वागत पर श्रेष्ठ घरों में नई ऊर्जा और सकारात्मकता आती है।
आखिरकार, बलि प्रतिप्रदा का हर पहलू—चाहे वो पूजा के दौरान घंटी बजती धुन हो, रंगोली की रंगों में मुस्कराहट हो या रसोई में सिमटी मिठास—इसी बात का सबूत देता है कि धर्म और परंपरा सिर्फ रीति-रिवाज नहीं, बल्कि दिलों को जोड़ने की वजह भी हैं।
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