दुर्गा पूजा: शरद ऋतु में माँ दुर्गा की पूजा गाइड

शरद ऋतु आते ही घर‑घर में धूप और बांसुरी की आवाज़ सुनाई देती है। यही वो समय है जब लोग नौवारी या दुर्गा पूजन करते हैं। अगर आप पहली बार कर रहे हैं तो घबराएँ नहीं, नीचे बताए गये आसान कदमों से आप भी माँ का आशीर्वाद ले सकते हैं।

दुर्गा पूजा की जड़ें प्राचीन वैदिक ग्रंथों में मिलती हैं। माना जाता है कि इस समय मां दुर्गा ने महिषासुर को हराया था, इसलिए इसे बुराई पर जीत का प्रतीक माना गया। शरद ऋतु के सात दिनों तक चलने वाली यह पूजा आज भी बहुत लोकप्रिय है।

इस पावन अवसर की खास बात यह है कि लोग अपने घर में या मंदिर में बड़े धूमधाम से देवी को आमंत्रित करते हैं। माँ का स्वरुप विभिन्न रूपों में दिखाया जाता है – शैलपुत्री, काली, कुमारी आदि। हर रूप के साथ अलग‑अलग कथाएँ जुड़ी होती हैं जो इस त्यौहार को और रंगीन बनाती हैं।

दुर्गा पूजा की महत्ता

पहला कारण है आध्यात्मिक शांति। जब आप माँ दुर्गा की प्रतिमा के सामने खड़े होते हैं, तो मन में एक अजीब सी शांति महसूस होती है। यह तनाव दूर करने में मदद करती है। दूसरा, सामाजिक जुड़ाव भी मजबूत होता है। परिवार और पड़ोसी मिलकर पूजा करते हैं, जिससे रिश्ते गहरे होते हैं।

तीसरा, इस समय के दौरान कई लोग अपने जीवन की नई शुरुआत का वादा करते हैं। नए व्यवसाय, नौकरी या पढ़ाई में सफलता पाने के लिए माँ से प्रार्थना की जाती है। इसलिए दुर्गा पूजन को अक्सर ‘आशीर्वाद’ वाला माना जाता है।

दुर्गा पूजा कैसे करें

सबसे पहले साफ‑सुथरा स्थान चुनें और वहाँ एक छोटा मंच बनाएं। माँ की तस्वीर या मूर्ति रखें, फिर चारों ओर रंगीन कपड़े से सजावट करें। यदि आपके पास धूप नहीं है तो इलेक्ट्रिक दीपकों का इस्तेमाल भी कर सकते हैं।

अगला कदम है सामान तैयार करना – नारियल, फूल, चावल, मिठाई और अगर चाहें तो हल्दी‑हलवा। इन सबको साफ बर्तन में रखकर माँ के सामने रखें। यह सभी चीज़ें प्रसाद बनती हैं जो बाद में वितरित की जाती हैं।

पूजा की मुख्य विधि है ‘अर्घ्य’ देना। दो या तीन बार नारियल तोड़ें, फिर गीता या दुर्गा स्तोत्र पढ़ें। आप खुद भी छोटा सा गीत गा सकते हैं – इससे माहौल और जीवंत हो जाता है।

पूजन के बाद प्रसाद बाँटें। यह सिर्फ भोजन नहीं बल्कि माँ का आशीर्वाद माना जाता है। अपने परिवार, मित्रों और पड़ोसियों को दें, ताकि सबको भाग्यशाली महसूस हो।

पूरी पूजा समाप्त होने पर हल्का सा ‘हवन’ या धूप जलाकर घर की साफ़‑सफ़ाई कर लें। यह नकारात्मक ऊर्जा दूर करता है और सकारात्मक माहौल बनाता है। अब आप शरद ऋतु में दुर्गा पूजन का पूरा आनंद ले सकते हैं, बिना किसी झंझट के।

नवरात्रि के चौथे दिन माँ कूष्मांडा की पूजा का महत्व और लाभ

नवरात्रि के चौथे दिन माँ कूष्मांडा की पूजा का महत्व और लाभ

नवरात्रि के चौथे दिन माँ कूष्मांडा की पूजा होती है, जो देवी दुर्गा का चौथा रूप हैं। इन्हें अपने आठ भुजाओं के कारण अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है। माँ कूष्मांडा ब्रह्मांड की संरचना की देवी मानी जाती हैं। इनकी उपासना से सुख-समृद्धि और सौभाग्य प्राप्त होता है।