हिजमत आंदोलन क्या था?

हिजमत आंदोलन का मतलब है लोगों का अपने घर से दूर जाकर किसी नई जगह बसना. यह शब्द अक्सर 1940‑45 के दशक की कहानी से जुड़ा है, जब कई भारतीय ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विरोध करने के लिए अलग‑अलग देशों में शरण ली. इस आंदोलन में सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक कारण जुड़े थे.

हिजमत आंदोलन की मुख्य बातें

सबसे बड़ा कारण था गरीबी और बेरोज़गारी. गाँवों में काम नहीं मिलने के कारण लोग शहर या विदेश चले गए. दूसरा कारण था ब्रिटिश शासन की नीतियां, जैसे कर बढ़ाना और जमीन से लोगों को बेदखल करना. इस समय कई नेता ने जनता को समझाया कि अगर हम शांतिपूर्ण तरीके से अपनी आवाज नहीं उठाएँ तो हमें कहीं बाहर जाना पड़ेगा.

आंदोलन में प्रमुख नेता थे: सरदार वल्लभभाई पटेल, जो प्रांतीय स्तर पर लोगों को संगठित करने में मदद करते थे; और महात्मा गांधी, जिन्होंने हिजमत की जगह अहिंसक प्रतिरोध को बढ़ावा दिया. इनकी बातों से कई लोग प्रेरित हुए और अपने घर छोड़कर नई ज़मीन खोजने लगे.

आज के समय में उसका महत्व

हिजमत आंदोलन हमें सिखाता है कि सामाजिक बदलाव केवल सरकारी आदेशों से नहीं, बल्कि लोगों की जरूरतों और संघर्ष से आता है. आज जब ग्रामीण क्षेत्रों में नौकरी की कमी फिर से बढ़ रही है, तो हम इस इतिहास को दोहराने से बच सकते हैं अगर सही नीति बनें.

आधुनिक भारत में हिजमत का मतलब अब सिर्फ़ शारीरिक स्थान बदलना नहीं, बल्कि नई तकनीक और कौशल सीखकर खुद को आगे ले जाना भी है. डिजिटल शिक्षा, स्टार्ट‑अप मदद और रोजगार योजनाएं इस विचार को नया रूप देती हैं.

अगर आप अपने इलाके में नौकरी की तलाश में हैं तो स्थानीय सरकारी स्कीम या निजी प्रशिक्षण केंद्रों से जुड़ें. कई बार छोटी सी जानकारी ही बड़ी परिवर्तन की शुरुआत बनती है.

हिजमत आंदोलन की कहानी हमें यह भी बताती है कि एकजुट आवाज़ कितनी ताकतवर होती है. जब लोग मिलकर अपनी समस्याओं को सामने लाते हैं, तो नीतियों में बदलाव जल्दी आता है.

समाज के हर सदस्य को चाहिए कि वह अपने अधिकारों और कर्तव्यों को समझे, ताकि भविष्य में हिजमत की आवश्यकता न पड़े. यह तभी संभव है जब हम शिक्षा, रोजगार और सामाजिक सुरक्षा पर ध्यान दें.

फेतुल्लाह गुलेन: तुर्की के विवादित इस्लामिक विद्वान की मृत्यु और उनकी विरासत

फेतुल्लाह गुलेन: तुर्की के विवादित इस्लामिक विद्वान की मृत्यु और उनकी विरासत

फेतुल्लाह गुलेन, अमेरिकी-आधारित तुर्की इस्लामिक विद्वान और तुर्की सरकार द्वारा 2016 के असफल तख्तापलट के मास्टरमाइंड के रूप में आरोपित, का 83 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। उनका निधन एक अमेरिकी अस्पताल में हुआ जहाँ वे चिकित्सा देखभाल में थे। उन्होंने एक वैश्विक आंदोलन 'हिजमत' की स्थापना की, जो शिक्षा और धार्मिक संवाद को बढ़ावा देता था।