किसानों का अपमान: क्यों हो रहा है यह समस्या?
भाड़े के कामगार नहीं, किसान अपने खेत‑खलिहानों में दिन‑रात मेहनत करते हैं, फिर भी कई बार उन्हें मीडिया और समाज दोहरा कर देखता है। जलवायु बदलने से फसलें बर्बाद हो जाती हैं, कीमतों की गिरावट आती है, और कभी‑कभी सरकारी नीतियों के कारण उनका सम्मान ठेस खा जाता है। इस लेख में हम समझेंगे कि किसान अपमान क्यों महसूस करते हैं और इससे बचने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं।
मुख्य कारण: नीति‑की कमी और सामाजिक नजरिया
पहला कारण अक्सर सरकारी नीतियों की उलझन है। जब MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) घटता या देर से मिलता है, तो किसान सीधे आर्थिक नुकसान में पड़ते हैं। कई बार बाजार में धंधे के दायरे को सीमित करने वाले नियम भी छोटे किसानों को बोझिल लगते हैं। दूसरा कारण सामाजिक नजरिया है—भोजन‑पानी की बुनियादी जरूरतें पूरी नहीं हो पातीं, तो लोग उन्हें ‘सामाजिक रूप से पिछड़ा’ कह कर अपमानित करते हैं।
आम जनता और मीडिया का रोल
प्रकाशन के दौरान कई बार खबरों में किसानों को केवल विरोधी समूह की तरह दिखाया जाता है। ऐसे कवरेज से उनका संघर्ष कम समझा जाता है, जबकि असल में यह रोज़मर्रा की आर्थिक जंग है। सोशल मीडिया पर भी अक्सर ‘किसान नहीं काम करते’ जैसे ग़लत धारणाएँ फैलती हैं, जो उनके आत्म‑सम्मान को चोट पहुँचाती हैं।
ऐसी स्थिति में किसान अपनी आवाज़ उठाते हैं—पिकनिक, धरना और हड़ताल के जरिए। 2024 की फ़सल कटाई के बाद कई राज्यों ने बड़े पैमाने पर प्रदर्शन देखे, जहाँ किसानों ने सरकार से तुरंत MSP बढ़ाने की मांग की। इन विरोधों ने दिखाया कि जब किसान संगठित होते हैं तो उनका दबाव कितना प्रभावी हो सकता है।
हालांकि, अक्सर यह विरोध हिंसक रूप ले लेता है और पुलिस के साथ टकराव पैदा करता है। तब मीडिया में ‘हिंसा’ की खबरें प्रमुख बनती हैं, जबकि वास्तविक मुद्दा आर्थिक असमानता रहता है। यही कारण है कि किसान अपमानित महसूस करते हैं—उनके वास्तविक संघर्ष को ही नहीं बल्कि उनके प्रतिरोध को ही नकार दिया जाता है।
समाधान के लिए कुछ ठोस कदम उठाए जा सकते हैं। सबसे पहले, सरकार को MSP की समय‑सारणी स्पष्ट करनी चाहिए और उसे स्थानीय बाजार की स्थिति से जोड़कर पुनः मूल्यांकन करना चाहिए। दूसरी बात, किसान प्रशिक्षण कार्यक्रमों में आधुनिक तकनीक जैसे ड्रिप इरिगेशन, बीज सुधार आदि को शामिल कर उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है। तीसरा, मीडिया को जिम्मेदार रिपोर्टिंग के लिए दिशानिर्देश अपनाने चाहिए ताकि किसानों की वास्तविक समस्याओं को सही ढंग से पेश किया जाए।
जनता भी भूमिका निभा सकती है—स्थानीय किसान मंडियों का समर्थन करके और उनके उत्पादों को प्राथमिकता देकर। जब हम सीधे बाजार में खरीदते हैं तो कीमतें स्थिर रहती हैं, जिससे किसानों को बेहतर मुनाफ़ा मिलता है। साथ ही, सामाजिक मंचों पर सकारात्मक कहानियाँ साझा करने से नकारात्मक धारणाएँ दूर हो सकती हैं।
कुल मिलाकर, किसान अपमान का मूल कारण नीतियों में खामियां और समाज की समझ की कमी है। अगर सरकार, मीडिया और जनता एकजुट होकर इन समस्याओं को सॉलिड तरीके से हल करें तो किसानों का सम्मान फिर से स्थापित होगा और कृषि क्षेत्र भी मजबूत बनेगा।

राहुल गांधी की कंगना राणावत पर टिप्पणी: किसानों के प्रति अपमान सहन नहीं
राहुल गांधी ने कंगना राणावत के किसान आंदोलन पर किए गए बयानों की आलोचना करते हुए इसे किसानों के प्रति 'महान अपमान' बताया है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म X पर कहा कि मोदी सरकार की प्रोपगैंडा मशीनरी किसानों का अपमान कर रही है। इसमें किसानों को 'बलात्कारी और विदेशी ताकतों के प्रतिनिधि' कहे जाने पर भी नाराजगी जताई।