तब्बू: भारत के ‘छुपे’ विषयों पर खुली बात
क्या आपने कभी सोचा है कि कुछ ख़बरें या बातें हमें सुनने में असहज लगती हैं? यही वो ‘तब्बू’ है जो समाज अक्सर टालता है। इस पेज में हम उन मुद्दों को सरल भाषा में समझाते हैं, ताकि आप खुद तय कर सकें क्या सही है और क्या नहीं।
क्यों बनते हैं टैटू? सामाजिक दवाब या परम्परागत मान्यताएँ?
भारत में कई बार धर्म, जाति‑पंथ या राजनीति को लेकर बात करना ‘ग़लत’ माना जाता है। जैसे ‘धर्म के नाम पर हिंसा’, ‘जेंडर समानता’ या ‘भ्रष्टाचार की कहानियाँ’। ये विषय अक्सर सेंसर्स और मीडिया से बचते हैं, क्योंकि दर्शकों में उलझन या नाराज़गी पैदा हो सकती है। लेकिन जब हम इनको छुपाते नहीं, तो ही समाज बदल सकता है।
उदाहरण के तौर पर देखें: एक हालिया लेख ‘वक्फ संशोधन विधेयक 2025’ ने धर्म‑आधारित संस्थाओं की शक्ति को सीमित करने की बात उठाई। इसे कई लोग टैबू मानते हैं, क्योंकि यह धार्मिक संरचनाओं को चुनौती देता है। फिर भी इस मुद्दे पर चर्चा जरूरी है, क्योंकि इससे सार्वजनिक निधि का सही उपयोग हो सकेगा।
तब्बू विषयों के पीछे की वास्तविकता
जब हम ‘स्टॉक मार्केट हॉलिडे अप्रैल 2025’ जैसी खबरें पढ़ते हैं, तो हमें नहीं लगता कि यह टैबू है। पर अगर वही लेख बताता कि कैसे सरकारी छुट्टियों का उपयोग कुछ बड़े शेयरधारकों ने बाजार को नियंत्रित करने में किया, तो कई लोग इसे ‘अस्वीकार्य’ कहेंगे और चर्चा से बचेंगे। यही कारण है कि अक्सर वित्तीय या आर्थिक मुद्दे भी टैबू बन जाते हैं—क्योंकि इन्हें समझना कठिन लगता है और इनका प्रभाव सीधे आम आदमी तक नहीं पहुँचता।
एक और उदाहरण: ‘हिना खान की शादी’ लेख में कैंसर के दौरान एक निजी समारोह का उल्लेख किया गया। कुछ लोगों ने इसे व्यक्तिगत जीवन को सार्वजनिक करने के रूप में टैबू माना, जबकि यह एक महत्वपूर्ण सामाजिक संदेश दे सकता था—कि बीमारी के बावजूद जीवन जीना संभव है।
इसी तरह ‘आरएमएस’ (राष्ट्रपति) की राजनीति या ‘ट्रम्प टैरिफ’ जैसे अंतरराष्ट्रीय आर्थिक कदम भी अक्सर ‘बहुत जटिल’ कहे जाने के कारण टैबू बन जाते हैं, जबकि ये रोज़मर्रा की ज़िंदगी को प्रभावित करते हैं।
तो फिर हमें क्या करना चाहिए? पहले तो इन मुद्दों को पढ़ना और समझना शुरू करें। दूसरे, सवाल पूछें—क्या यह जानकारी सार्वजनिक हित में है? क्या इसका कोई समाधान निकाला जा सकता है? जब हम इन प्रश्नों के जवाब ढूँढते हैं, तो टैबू की दीवार धीरे‑धीरे गिरती है।
आखिरकार, टैबू केवल एक सामाजिक जाल है—अगर आप उसके अंदर फंसना नहीं चाहते, तो ज्ञान और संवाद ही आपका सबसे बड़ा हथियार है। इस पेज पर हम लगातार ऐसे लेख जोड़ते रहेंगे जो ‘तब्बू’ शब्द को हटाकर सच्चाई लाते हैं। पढ़ें, टिप्पणी करें, और अपने विचार साझा करके टैबू को तोड़ने में मदद करें।

नीरज पांडे की 'और कौन दम था' रिव्यु: अजय देवगन और तब्बू की अदाकारी ने लगाया चार चांद
नीरज पांडे निर्देशित 'और कौन दम था' एक रोमांचक स्पाई थ्रिलर है, जो जासूसी और देशभक्ति की दुनिया में प्रवेश कराती है। फिल्म में अजय देवगन, तब्बू, सई मांजरेकर और शांतनु माहेश्वरी की उम्दा अदाकारी देखने को मिलती है। फिल्म राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने वाली एक खतरनाक साजिश का पर्दाफाश करने वाले एक सेवानिवृत्त जासूस की कहानी पर केंद्रित है।