
जब कांवड़ यात्रा 2025 ने सायंकाल 2:06 बजे, वैदिक कैलेंडर के अनुसार कृष्ण पक्ष प्रतिपदा तिथि से अपनी शुरुआत की, तो उत्तर प्रदेश के कई जिलों में सड़कों पर पहला खून‑पसीना चेहरा धुँधला हो गया। लाखों लोग गंगाजल लेकर शिवालयों तक पहुंचने के सरस सवारियों से ‘बोल बम’ की गूँज सुनाई दी, पर साथ‑साथ ट्रैफ़िक जाम ने छात्रों की पढ़ाई को भी बाधित कर दिया।
उत्तरी भारत में हर साल इस पावन यात्रा का असर कई दिगज रूप में दिखता है—भारी वाहन, ध्वनि‑प्रदूषण, और सबसे बड़ी बात, शिक्षा का बुरा असर। इस बार, उत्तर प्रदेश पुलिस ने सुरक्षा को लेकर "बहुत ही कड़ी" पाबंदियाँ लागू कीं, जबकि मेरठ और मुजफ्फरनगर के स्कूलों को 16‑23 जुलाई तक बंद कर दिया गया।
इतिहास व पृष्ठभूमि
कांवड़ यात्रा का जड़ें समुद्र मन्थन की कथा में मिलती हैं। जब भगवान शिव ने विष पी लिया था, तो देवताओं ने विष के प्रभाव को कम करने के लिये गंगाजल उनका माथा पर छींड़ दिया। इस परम्परा में, शिवभक्त गंगे का जल लेकर अपने कांवड़ में भरते हैं और शिवालयों में अर्पित करते हैं। सावन‑शिवरात्रि के दिन यह रिवाज चरम पर पहुंचता है।
पिछले साल ही 2024 में, कुल 1.8 मिलियन से अधिक कांवड़धारी ने समान मार्ग अपनाया था। उस वर्ष भी कई जिलों में ट्रैफ़िक जाम और स्कूलों की बंदी हुई थी, पर इस बार पुलिस की प्रतिबंधात्मक الإجراءات ने ऊँचा स्तर छुआ।
जांच‑पड़ताल: पुलिस की कड़ी कदम
उत्तरी प्रदेश के सात जिलों—मेरठ, मुजफ्फरनगर, शमली, सहारानपुर, बुलंदशहर, हापुर और बागपत—में विशेष रूप से सुरक्षा बल तैनात किए गए। उत्तर प्रदेश पुलिस ने कावड़धारियों को त्रिशूल, हॉकी स्टिक, धावक धारी और अन्य किसी भी प्रकार के हथियारों को लेकर चलने से रोक दिया। मोटरसाइकिलों पर साइलेंसर न होने पर उन्हें मार्ग से हटा दिया गया।
रूट डाइवर्शन को कई पॉइंट पर लागू किया गया, जिससे बहु‑धारावाहिक ट्रैफिक को वितरित किया जा सके। उदाहरण के तौर पर, मेरठ‑बागपत हाईवे पर एक वैकल्पिक ‘आभ्यंतरीक मोड़’ बनाया गया, जहाँ कांवड़धारी एक घंटे के अंदर नज़र आ सकते थे, जबकि अनावश्यक जाम से बचा जा सके।
शिक्षा पर असर: स्कूल बंदी की वजह और प्रभाव
शिक्षा विभाग ने 16 जुलाई से 23 जुलाई तक, कक्षा 1 से 12 तक, सभी सरकारी‑निजी स्कूलों को बंद रखने का आदेश दिया। इस निर्णय का मुख्य कारण था "बेहद ट्रैफ़िक जाम और संभावित दुर्घटना जोखिम"। बंदी के दौरान, लगभग 350,000 छात्रों को घर में रहना पड़ा। हालांकि, कई निजी कोचिंग संस्थानों ने ऑनलाइन कक्षाओं का विकल्प दिया, जिससे कुछ लचीलापन बना रहा।
स्थानीय निकायों ने कहा कि यह बंदी केवल अस्थायी है; अगले साल की कांवड़ यात्रा के लिये ट्रैफ़िक मैनेजमेंट में और भी सुधार की योजना है।
विविध पक्षों की राय
श्री अमित कुमार, शिक्षा अधिकारी, मेरठ जिला शिक्षा कार्यालय ने कहा, "छात्रों की सुरक्षा प्राथमिकता है, पर हम चाहते हैं कि भविष्य में ऐसे बड़े आयोजन के लिये विशेष स्कूल‑शटल सेवाएँ शुरू हों।"
दूसरी ओर, श्री राकेश सिंह, स्थानीय पंचायत के प्रमुख ने कहा, "कांवड़ यात्रा हमारी सांस्कृतिक धरोहर है, लेकिन पुलिस की सख़्त पाबंदियों ने भी शांति को बनाए रखा।"
धार्मिक विश्लेषक डॉ. अंजलि त्रिवेदी, इतिहास प्रो. (एम.ए.) ने बताया, "सावन माह में शिवभक्तों का उत्साह अत्यधिक होता है। इस ऊर्जा को नियंत्रित करने के लिये प्रशासनिक कदम जरूरी होते हैं, पर साथ में सामाजिक जागरूकता भी बढ़नी चाहिए।"

आगे क्या?
कांवड़ यात्रा 2025 का समाप्ती 23 जुलाई, सावन शिवरात्रि के साथ होगी, जब सभी कांवड़धारी अपने कावां को गंगाजल से शुद्ध करेंगे और देवी‑देवताओं को अर्पित करेंगे। पुलिस ने कहा कि 24 जुलाई के बाद सभी प्रतिबंध हटा दिए जाएंगे और सामान्य ट्रैफ़िक प्रवाह फिर से शुरू हो जाएगा।
विशेष रूप से, उत्तर प्रदेश सरकार ने अगले वर्ष के लिये डिजिटल ट्रैफ़िक मॉनिटरिंग सिस्टम लागू करने का प्रस्ताव रखा है, जिससे रीयल‑टाइम में भीड़ को नियंत्रित किया जा सके। साथ‑साथ, विद्यालयों के लिये थीम‑आधारित ऑनलाइन सामग्री तैयार की जा रही है, जिससे छात्र धार्मिक त्योहारों के इतिहास को समझ सकें।
मुख्य तथ्य
- कांवड़ यात्रा 2025 का प्रस्थान: 11 जुलाई, 2025, 02:06 एएम (वैदिक कैलेंडर)
- यात्रा समाप्ति: 23 जुलाई, 2025 (सावन शिवरात्रि)
- बंद किए गये जिले: मेरठ, मुजफ्फरनगर (16‑23 जुलाई)
- पुलिस द्वारा लागू प्रतिबंध: त्रिशूल, हॉकी‑स्टिक, मोटर‑साइलेंसर‑रहित बाइक्स पर प्रतिबंध
- लगभग 1.9 मिलियन कांवड़धारी ने 2025 में भाग लिया
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
कांवड़ यात्रा के दौरान स्कूल क्यों बंद हुए?
मेरठ और मुजफ्फरनगर के स्कूल 16‑23 जुलाई तक बंद रहे क्योंकि भारी भीड़ से सड़कों पर जाम और दुर्घटना जोखिम बढ़ गया था। शिक्षा विभाग ने छात्रों की सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए यह कदम उठाया।
पुलिस ने कौन‑कौन सी प्रतिबंधात्मक नियम लागू किए?
त्रिशूल, हॉकी‑स्टिक, धावक धारी जैसे सभी प्रकार के हथियारों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। साथ ही साइलेंसर‑रहित मोटरसाइकिलों को मार्ग से हटाने, रूट डाइवर्शन लागू करने और भीड़‑प्रबंधन के लिये अतिरिक्त बल तैनात किए गए।
कांवड़ यात्रा का धार्मिक महत्व क्या है?
यह यात्रा समुद्र मन्थन में शंकर द्वारा विष पीने की कथा से जुड़ी है। वह विष को हल्का करने के लिये गंगाजल का सेवन करते थे, इसलिए भक्त गंगा जल लेकर शिवालयों में अर्पित करते हैं। सावन माह में यह परम्परा विशेष रूप से आशिर्वादकारी मानी जाती है।
भविष्य में ऐसी भीड़ को कैसे नियंत्रित किया जाएगा?
राज्य सरकार ने डिजिटल ट्रैफ़िक मॉनिटरिंग सिस्टम, विशेष शटल सेवा, और ऑनलाइन शैक्षणिक सामग्री तैयार करने की योजना बनायी है, जिससे भीड़‑प्रबंधन और शैक्षणिक निरंतरता दोनों सुनिश्चित हों।
कांवड़ यात्रा के दौरान सुरक्षा को लेकर स्थानीय लोगों की क्या प्रतिक्रिया रही?
काफी लोग सुरक्षा उपायों को सराहते रहे, जबकि कुछ ने कहा कि सख़्त पाबंदियों ने परम्परा में बाधा डाली। कुल मिलाकर, शांति और सुरक्षा को लेकर अधिकांश दर्शकों ने सहयोग दिया।
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1 टिप्पणि
इतनी भीड़ में स्कूल बंद हो गया तो बब्बी, बच्चों को तो घर में ही मस्ती करनी पड़ेगी!
मगर कांवड़धारी लोग तो गंगाजल लेकर थे, उनका इरादा नेक है, बस ट्रैफ़िक में फँस गया।
पुलिस ने जो कड़ी पाबंदियां लगाई हैं, उससे जैसे भक्के को दही में डुबो दिया।
आँखों से आँसू नहीं, पर दिल से थोड़ी ख़ुशी भी है कि सुरक्षा को प्राथमिकता दी गई।
अगली बार शायद शटल सर्विस से सबको आराम मिलेगा।