जब अचल्य कृष्णा दत्त शर्मा, ज्योतिषाचार्य और Navbharat Times ने 17 जनवरी 2025 को संकष्टी चतुर्थी के शुभ क्षणों की घोषणा की, तो लाखों श्रद्धालु तुरंत कैलेंडर में तारीख चिह्नित कर बैंड बजाने लगे। यह विशिष्ट दिन, जो हिंदू पंचांग के अनुसार माघ माह कृष्ण पक्ष चतुर्थी है, कई आयामों में महत्व रखता है – धार्मिक, ज्योतिषीय और सामाजिक।
पंचांग का सार और मुख्य तिथियाँ
संपूर्ण भारत में शुक्रवार, 17 जनवरी 2025 को संकष्टी चतुर्थी (जिसे लम्बोदर संकष्टी चतुर्थी या साकत चतुर्थी भी कहा जाता है) मनाया जाएगा। इस अवसर के प्रमुख समय‑निर्धारण इस प्रकार हैं:
- सूर्यदय: 07:15 बजे
- सूर्यास्त: 17:48 बजे
- चंद्रोदय (मुख्य व्रत ब्रेक): 21:09 बजे (शाम)
- चंद्रास्त: 09:32 बजे (अगले दिन)
- व्रत का प्रारम्भ: 04:06 बजे (शुरुआती मुहूर्त)
- व्रत समाप्ति: 05:30 बजे (अगले दिन)
ये आंकड़े Jagran.com और Times Now Hindi के विश्वसनीय पंचांग रिपोर्टों से मिलते‑जुलते हैं, जिससे डेटा की सटीकता की पुष्टि होती है।
नक्षत्र, योग व करन की विस्तृत जानकारी
सूर्य की किरणें जब लीओ राशी में स्थित चंद्रमा से मिलती हैं, तो पूरे दिन का नक्षत्र मघा रहता है, जो दोपहर 12:45 बजे तक चलता है। उसके बाद पूर्वफाल्गुनी नक्षत्र शुरू होता है। यही कारण है कि आज का योग सौवग्य योग दोपहर 12:57 बजे तक रहता है, फिर शोभन योग में बदल जाता है।
करन की बात करें तो बव करन दोपहर 16:49 बजे तक रहता है, और उसके बाद कौलव करन आकर प्राबल्य स्थापित करता है। इन सभी विवरणों को Navbharat Times के अनुभवी खगोलशास्त्रियों ने पुष्टि की है।
शुभ मुहूर्त और अयोग्य समय‑स्लॉट
ज्योतिषीय परामर्श के मुताबिक, इस दिन के प्रमुख शुभ मुहूर्त इस प्रकार हैं:
- ब्रह्म मुहूर्त: 05:27 – 06:21 (Jagran) / 05:30 – 06:24 (Navbharat)
- विजय मुहूर्त: 14:17 – 14:59 (Jagran) / 14:24 – 15:06 (Navbharat)
- गोधूली मुहूर्त: 17:45 – 18:12
- अभिजीत मुहूर्त: 12:01 – 12:52
- चर मुहूर्त: 07:15 – 08:34
- लभ मुहूर्त: 08:34 – 09:53
- अमृत मुहूर्त: 09:53 – 11:12
इनके विपरीत, राहुकाल (11:12 – 12:31) और यमगंड (15:30 – 16:30) जैसे अयोग्य समय‑स्लॉट्स में महत्त्वपूर्ण कार्यों को टालना बेहतर माना जाता है। Jagran.com और YouTube के आध्यात्मिक वीडियो दोनों ही इस बात पर ज़ोर देते हैं कि इन क्षणों में यात्रा या बड़े निवेश से बचना चाहिए।
आचार्य कृष्णा दत्त शर्मा की सलाह और पंडित शैलेंद्र पांडे के उपाय
"संकष्टी चतुर्थी के दिन गर्भावस्था, शिक्षा और व्यापार में सकारात्मक बदलाव होते हैं, परन्तु अयोग्य काल में यात्रा या नई शुरुआत करने से बचना चाहिए," कहा अचल्य कृष्णा दत्त शर्मा ने अपने लेख में। उन्होंने विशेष रूप से कहा कि यदि अनिवार्य रूप से पश्चिम दिशा में यात्रा करनी पड़े तो थोड़ा दही का सेवन कर, प्रार्थना के साथ यात्रा करना श्रेष्ठ रहेगा।
इसी क्रम में पंडित शैलेंद्र पांडे ने यूट्यूब पर एक छोटा व्याख्यान दिया, जिसमें उन्होंने बताया कि चंद्रोदय के बाद शीघ्र ही भोग विलास समाप्त कर, भगवान गणेश की मूर्ति को पानी, चंदन और कण्कड़ लगाकर पूजा करनी चाहिए। "संकष्टी चतुर्थी का मूल उद्देश्य माँ‑बच्चे की दीर्घायु है; इसलिए महिलाएँ समय पर उपवास समाप्त करें," उन्होंने सलाह दी।
सांस्कृतिक महत्व और सामाजिक प्रभाव
संकष्टी चतुर्थी सिर्फ एक तिथि नहीं, बल्कि मातृभक्ति की भावना का उत्सव भी है। महिलाएँ इस दिन अपने बच्चों के स्वास्थ्य, विद्या और लंबी आयु के लिए कड़ी व्रत रखती हैं। धार्मिक परिप्रेक्ष्य में यह दिन लम्बोदर के रूप में भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है "विजयी गणेश"। यह उपाय‑संकल्प आजकल सोशल मीडिया पर भी चर्चा का हिस्सा बन गया है; कई परिवार इस दिन के शुभ क्षणों में रात्रि भोज की तैयारी करते हैं, और उत्सव की तस्वीरें इंस्टाग्राम पर साझा करते हैं।
इसके अलावा, विभिन्न स्थानीय संगठनों ने इस अवसर पर सामुदायिक स्नान, चपखाने के कार्यक्रम और दान कार्यों का आयोजन किया है। इससे न सिर्फ धार्मिक भावना को बल मिलता है, बल्कि सामाजिक बंधनों में भी मजबूती आती है।
भविष्यवाणी और अगले चरण
ज्योतिषीय विशेषज्ञ मानते हैं कि यह चतुर्थी आगे के महीनों में आर्थिक उत्थान और शैक्षिक सफलता को प्रेरित करेगी, बशर्ते लोग पंचांग में बताई गई अवरोध समय‑स्लॉट्स का सम्मान करें। इस साल की संकष्टी चतुर्थी के बाद अगली प्रमुख तिथि फाल्गुन शुक्ल कमला है, जो 4 मार्च को आएगी। इस समय तक, विशेषज्ञ आशा करते हैं कि भक्तगण अपने उपवास और पूजा कार्यों को नियमित रूप से जारी रखें।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
संकष्टी चतुर्थी पर किस दिशा में यात्रा से बचना चाहिए?
ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार, पश्चिम दिशा में यात्रा को आज के दिन अपवित्र माना गया है। यदि अनिवार्य हो तो हल्का दही खा कर, मन में गणेश की आराधना करते हुए यात्रा करना उचित माना जाता है।
व्रत के दौरान कौन‑से आध्यात्मिक मोमेंट्स अधिक फलदायी हैं?
संकष्टी चतुर्थी का प्रमुख मोमेंट चंद्रोदय (21:09) है, जब उपवास खोलने की प्रक्रिया शुरू होती है। इस समय गणेश की मूर्ति को जल, चंदन और कण्कड़ से सजाकर 108 बार जप करने से मनोकामनाएँ पूरी होने की संभावनाएं बढ़ती हैं।
राहुकाल और यमगंड के दौरान कौन‑से कार्य बचाने चाहिए?
राहुकाल (11:12‑12:31) और यमगंड (15:30‑16:30) में नई व्यापारिक सौदे, शादी या घर में बड़े बदलाव करना टालना चाहिए। इन समय‑स्लॉट्स में यात्रा, शस्त्रधारी कार्य या विवादास्पद कोई भी निर्णय जोखिमपूर्ण माना जाता है।
इस व्रत के सामाजिक लाभ क्या हैं?
संकष्टी चतुर्थी पर सामुदायिक दान, भोजन वितरित करना और महिला समूहों की एकत्रता सामाजिक बंधन को मजबूत करती है। कई नगर पालिकाओं में इस दिन मुफ्त स्वास्थ्य जांच और बाल शिक्षा अभियान चलाए जाते हैं, जिससे सामाजिक विकास को भी प्रोत्साहन मिलता है।
भविष्य में इस तिथि से जुड़ी कौन‑सी प्रमुख घटनाएँ होंगी?
ज्योतिषीय गणना के अनुसार, 17 जनवरी के बाद फाल्गुन शुक्ल कमला (4 मार्च) बड़ी शैक्षिक और आर्थिक लाभ लाएगा। विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि इस समय तक लोग अपने उपवास के अनुशासन को जारी रखें, जिससे आगामी महीनों में सकारात्मक प्रभाव देखेंगे।
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6 टिप्पणि
संकष्टी चतुर्थी का खगोलिक विवरण पढ़कर लगता है कि हमारी परम्पराओं में विज्ञान कितना गहरा जुड़ा है। इस तरह के विस्तृत पंचांग से लोग सही समय चुन पाते हैं और अपने अनुष्ठान को और सार्थक बनाते हैं।
सूर्य‑चन्द्र के मिलन को देखना ही नहीं, बल्कि उसके साथ जुड़े योग‑करन को समझना हमारे पूर्वजों की बुद्धिमत्ता को दर्शाता है। जब मघा नक्षत्र का प्रभाव रहता है, तो कई व्यवसायों में लाभ की संभावना बढ़ती है। इसलिए, ब्रह्म मुहूर्त में नई शुरुआत को टालना नहीं, बल्कि उसे सुदृढ़ करना चाहिए।
मैंने भी इस साल संकष्टी चतुर्थी पर घर में छोटा कार्यक्रम किया, और सभी को बहुत शांति मिली। व्रत समाप्ति के बाद दही‑पुड़ी की मिठाई बाँटने से माहौल और भी खुशनुमा हो गया।
अरे हाँ, राहुकाल में निवेश करने से बेहतर तो रसीला चाय पिलाना है, क्योंकि वही तो सच्चा जोखिम है।
संकष्टी चतुर्थी हमारे सामाजिक ढाँचे में एक महत्वपूर्ण मोड़ है, क्योंकि यह न केवल मातृभक्ति का उत्सव है बल्कि आर्थिक सततता की भी राह खोलता है। प्रथम भाग में ब्रह्म मुहूर्त को सबसे अनुकूल माना जाता है, जिससे नए प्रोजेक्ट्स का आरम्भ करना लाभकारी हो सकता है। द्वितीय भाग में विजय मुहूर्त के दौरान व्यापारिक कार्यों को सुदृढ़ करने की सलाह दी जाती है, यह समय शारीरिक और मानसिक ऊर्जा का संतुलन बनाता है। गोधूली मुहूर्त में व्यक्तिगत ध्यान और आध्यात्मिक साधना से मन की शुद्धि होती है, जिससे जीवन में स्पष्टता आती है। अभिजीत मुहूर्त का महत्व शैक्षिक प्रगति में निहित है, इसलिए छात्र और शिक्षक इस समय को अध्ययन व शिक्षण में समर्पित कर सकते हैं। चर मुहूर्त और लभ मुहूर्त का उपयोग सामाजिक दान कार्यों में करना चाहिए, क्योंकि ये समय पर कर्तव्य भावना अधिक प्रबल होती है। अमृत मुहूर्त में स्वास्थ्य संबंधी कार्यों को प्राथमिकता देना चाहिए, जैसे योग या स्वास्थ्य जांच। राहुकाल में नई यात्रा या बड़े निवेश से बचना समझदार कदम है, क्योंकि यह समय प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। यमगंड के दौरान व्यक्तिगत मतभेद या विवाद को बढ़ावा न देना चाहिए, क्योंकि इससे रिश्तों में दरार पड़ सकती है। चंद्रमा के बव करन से लेकर कौलव करन तक के परिवर्तन को ध्यान में रखकर मनोकामनाओं को साकार करने के लिए मंत्र जपना उत्तम रहता है। पंचांग में बताए गए अयोग्य समय‑स्लॉट्स का सम्मान करके हम न केवल आध्यात्मिक शांति पाते हैं, बल्कि सामाजिक समरसता भी बनाये रखते हैं। कई विद्वान कहते हैं कि इस चतुर्थी के बाद के महीनों में आर्थिक उछाल और शैक्षिक उपलब्धियों की संभावनाएं बढ़ती हैं, यदि हम अपने कार्यों को उचित समय‑स्लॉट में रखें। इसलिए, प्रत्येक व्यक्ति को अपने दैनिक कार्यों को पंचांग के अनुसार व्यवस्थित करना चाहिए, जिससे जीवन में सौहार्द और समृद्धि बनी रहे। अंत में, यह कहा जा सकता है कि संकष्टी चतुर्थी का वास्तविक सार केवल अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्म‑विकास और सामाजिक कर्तव्य का पालन है। इस दिन की शुभता को समझकर और उसका सही उपयोग करके हम सभी एक बेहतर भविष्य की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं।
संकष्टी के लिये दही-छाछ का सेवन फायदेमंद हो सकता ह है, क्योंकि एकरसे पाचक तंत्र सुधरता हैं। साथ ही, सुबह के समय हलका योग करने से दिन भर ऊर्जा बनी रहती ह।