BRICS का डॉलर पर निर्भरता कम करने वाला क्रॉस-बॉर्डर पेमेंट सिस्टम: भारत को मिलेगा बड़ा फायदा

BRICS का डॉलर पर निर्भरता कम करने वाला क्रॉस-बॉर्डर पेमेंट सिस्टम: भारत को मिलेगा बड़ा फायदा

BRICS: एक नया आर्थिक अध्याय, डॉलर पर निर्भरता की चुनौती

BRICS देशों—भारत, ब्राजील, रूस, चीन और दक्षिण अफ्रीका—ने बीते कुछ महीनों में एक बड़ी रणनीतिक चाल चली है। इन देशों का फोकस अब अमेरिकी डॉलर की पकड़ कम करने पर है, और इसके लिए उन्होंने अपने-अपने क्रॉस-बॉर्डर पेमेंट सिस्टम को आपस में जोड़ने की पहल की है। खास बात ये है कि अमेरिका की सीधी धमकियों और दबाव के बावजूद BRICS देश अपने रास्ते से पीछे नहीं हटे हैं।

इस विचार की शुरुआत 2015 में हुई थी, लेकिन बढ़ते अमेरिकी टैरिफ और डॉलर की वैश्विक स्थिरता में उतार-चढ़ाव के कारण यह जरूरत और भी बढ़ गई है। अब सभी सदस्य देश अपने बीच के व्यापार का बड़ा हिस्सा स्थानीय मुद्राओं में करने की तैयारी में हैं। इससे उनके व्यापार की लागत घटेगी क्योंकि बार-बार डॉलर में बदलने की जरूरत नहीं रहेगी।

ताजा BRICS वित्त मंत्री और केंद्रीय बैंकों के गवर्नर की बैठकें इस दिशा में असली मोड़ ले आईं। इन बैठकों में यह भी देखा गया कि आपसी पेमेंट सिस्टम्स को कैसे एक-दूसरे से जोड़कर लेन-देन को तेज, सस्ता और सुरक्षित बनाया जा सकता है। बातचीत में ये भी सामने आया है कि यह पहल डॉलर को चुनौती देने के लिए नहीं, बल्कि व्यापार में आने वाली दिक्कतों और अस्थिरता का मक़ाबला करने के लिए है।

भारत को कैसे होगा फायदा?

भारत इस पूरी प्रक्रिया में सबसे आगे दिख रहा है। 2026 में भारत BRICS की अध्यक्षता करने वाला है, और उस समय तक यह सिस्टम काफी हद तक आकार ले चुका होगा। भारत के लिए इसका मतलब है—ट्रेडर्स को विदेशी मुद्रा विनिमय खर्च में बड़ी राहत, लेन-देन का समय घटेगा और छोटे-बड़े सभी कारोबारियों को व्यापार में नई स्वतंत्रता मिलेगी।

ब्राजील में, चीन के क्रॉस-बॉर्डर इंटरबैंक पेमेंट सिस्टम (CIPS) को एक निजी चीनी बैंक के जरिए लागू किया जा चुका है। इससे ब्राजील और चीन के बीच पैसे का लेन-देन प्रोसेस पहले से काफी आसान हो गया। अब यही मॉडल BRICS के बाक़ी देशों के लिए अपनाने की योजना भी जोरों पर है।

हालांकि, इस पूरे सिस्टम को लागू करने में कई चुनौतियां हैं। पहली दिक्कत है—हर देश का बैंकिंग और टेक्नोलॉजी ढांचा बराबर नहीं है। दूसरा, आपसी व्यापार में अंतर (trade imbalance) भी बड़ा सिर दर्द हो सकता है। लेकिन BRICS का नजरिया काफी स्पष्ट है—अमेरिका के दबाव और डॉलर पर निर्भरता को कम करना है ताकि ग्लोबल साउथ देशों का आर्थिक सहयोग और मज़बूत हो सके।

ब्राजील के सेंट्रल बैंक ने इस पूरे पेमेंट सिस्टम को लेकर एक टेक्निकल रिपोर्ट भी तैयार की है, जिसमें पारदर्शिता और दक्षता को सबसे बड़ी प्राथमिकता दी गई है। रिपोर्ट के मुताबिक, सिस्टम में यूजर्स की प्राइवेसी और ट्रांसपेरेंसी दोनों का बैलेंस रखा जाएगा। अगले फेज़ में अब यही देखा जाएगा कि ये नया समाधान किस तरह धरातल पर उतरे और 2026 की BRICS समिट तक इसका कामकाज किस स्तर तक पहुंच पाता है।

  • BRICS में डॉलर के बिना व्यापार करने की कोशिश,
  • स्थानीय करेंसी में सीधा लेन-देन,
  • ब्राजील-चीन के बीच CIPS का सफल ट्रायल,
  • भारत को अंतरराष्ट्रीय व्यापार में नई मजबूती की उम्मीद।

अब सबकी नजरें 2026 पर हैं, जब भारत नेतृत्व करेगा और यह क्रॉस-बॉर्डर पेमेंट सिस्टम असल मायनों में अर्थव्यवस्था की तस्वीर बदल सकता है।

10 टिप्पणि

shyam majji
shyam majji
अगस्त 7, 2025 AT 22:07

ये सब तो बस धुंधला ड्रामा है। डॉलर की जगह कौन लेगा? चीन की रुपये-युआन ट्रांसफर? हंसी आ रही है।
अब तक तो हम डॉलर में ही तेल खरीदते हैं।

Khagesh Kumar
Khagesh Kumar
अगस्त 8, 2025 AT 14:03

ये बात सही है। जब तक हम अपनी मुद्रा में व्यापार नहीं करेंगे, तब तक हम दूसरों के नियमों के आगे झुकेंगे। ब्राजील और चीन का CIPS ट्रायल अच्छा था। अब भारत को इसमें आगे आना होगा।

Ritu Patel
Ritu Patel
अगस्त 9, 2025 AT 21:41

हां भाई! अब तक हम अमेरिका के बाप बने रहे। अब देखो वो डॉलर का ताबूत कैसे बंद हो रहा है। हम तो अपनी जमीन पर खड़े हो रहे हैं। जब तक तुम डॉलर में सोचते रहोगे, तब तक तुम गुलाम रहोगे।

Deepak Singh
Deepak Singh
अगस्त 10, 2025 AT 01:26

इस सिस्टम के लिए, आपको वास्तविक तकनीकी इंफ्रास्ट्रक्चर, एकीकृत सुरक्षा प्रोटोकॉल, और बहु-देशीय नियमों की आवश्यकता है-जो अभी तक किसी ने नहीं बनाया है। बस बयान देने से कुछ नहीं होता।

Rajesh Sahu
Rajesh Sahu
अगस्त 11, 2025 AT 16:49

अमेरिका को डर लग रहा है! वो जानता है कि अगर हम डॉलर को छोड़ देंगे, तो वो अपनी शक्ति खो देगा। हम भारतीय हैं-हम लड़ेंगे, हम जीतेंगे। डॉलर का अंत आ रहा है!

Chandu p
Chandu p
अगस्त 12, 2025 AT 19:01

बहुत अच्छा कदम है। अब छोटे व्यापारी भी आसानी से विदेशों के साथ काम कर पाएंगे। ये वाकई ग्लोबल साउथ की ताकत है। जय हिंद!
🙏

Gopal Mishra
Gopal Mishra
अगस्त 14, 2025 AT 10:44

यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण विकास है, लेकिन इसकी सफलता का मुख्य आधार यह होगा कि क्या हम अपने बैंकिंग सिस्टम को वास्तविक रूप से अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बना पाते हैं। तकनीकी समर्थन, सामान्य डेटा फॉर्मेट, और वित्तीय सुरक्षा के लिए एक समन्वित दृष्टिकोण अनिवार्य है। अगर यह नहीं होगा, तो यह सिर्फ एक शानदार घोषणा रह जाएगा।

Swami Saishiva
Swami Saishiva
अगस्त 15, 2025 AT 23:43

हर बार एक नया ड्रीम बनाते हो। असल में क्या हो रहा है? चीन अपनी मुद्रा फैला रहा है। भारत उसके साथ बैठ गया। बाकी सब बस झूल रहे हैं।

Swati Puri
Swati Puri
अगस्त 17, 2025 AT 20:45

इस इंटर-बैंक पेमेंट गेटवे के लिए, रियल-टाइम रिकॉन्सिलिएशन मॉड्यूल, डेबिट-क्रेडिट लेजर इंटीग्रेशन, और रेग्युलेटरी कॉम्प्लायंस एपीआई की आवश्यकता है। अगर ये नहीं हैं, तो यह सिर्फ एक लैंडस्केप ड्रॉइंग है।

megha u
megha u
अगस्त 19, 2025 AT 14:50

ये सब बस एक बड़ा बुलशिट है। अमेरिका ने पहले ही इसे बंद कर दिया होगा। तुम्हारे लिए ये सब बस एक भावनात्मक आराम है। 😈

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