मानवाधिकार कार्यकर्ता और पूर्व प्रोफेसर जी. एन. साइबाबा का निधन: दस साल की कैद से मिली थी रिहाई

मानवाधिकार कार्यकर्ता और पूर्व प्रोफेसर जी. एन. साइबाबा का निधन: दस साल की कैद से मिली थी रिहाई

जी. एन. साइबाबा: संघर्ष और प्रेरणा की कहानी

जी. एन. साइबाबा का नाम भारतीय मानवाधिकार आंदोलन में एक मजबूत स्तंभ के रूप में लंबे समय तक याद रखा जाएगा। मात्र 58 वर्ष की आयु में उनके निधन से न केवल उनके परिवार में बल्कि पूरे देश में गहरा शोक व्याप्त है। उनके जीवन की कहानी न केवल उनके संघर्षशील व्यक्तित्व की गवाही देती है बल्कि यह भी स्पष्ट करती है कि कैसे उन्होंने लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने रहे।

साइबाबा को 2014 में माओवादी संगठनों से जुड़े होने के आरोप में महाराष्ट्र पुलिस ने गिरफ्तार किया था। इस गिरफ्तारी के बाद मानवाधिकार संगठनों और समर्थकों ने इसे गलत बताते हुए विरोध जताया था। उनका आरोप था कि साइबाबा को फंसाकर उन्हें चुप कराने की कोशिश की गई थी। साइबाबा बचपन से पोलियो के कारण अपंगता का शिकार थे और उन्हें हमेशा व्हीलचेयर का सहारा लेना पड़ा। उनकी इस शारीरिक स्थिति के बावजूद वह अपने विचारों और लेखन के माध्यम से समाज में बदलाव लाने का प्रयास करते रहे।

स्वास्थ्य समस्याएं और जेल में संघर्ष

साइबाबा का स्वास्थ्य उनके गिरफ्तार होने के बाद बहुत बिगड़ गया था। जेल में बिताए समय के दौरान उनके स्वास्थ्य की स्थिति और बदतर हो गई, जिसका मुख्य कारण उनकी शारीरिक स्थिति को लेकर मिली उपेक्षा थी। उन्हें दिल की बीमारी, उच्च रक्तचाप, किडनी में पथरी, दिमाग में गांठ, और अन्य कई समस्याओं का सामना करना पड़ा।

सोलिटरी कन्फाइनमेंट में उन्हें रखे जाने के कारण उनके स्वास्थ्य पर अत्यंत नकारात्मक प्रभाव पड़ा। मानवाधिकार संगठनों द्वारा इस पर काफी विरोध किया गया और इसे अवमानवीय बताया गया। लेकिन यह उनकी मजबूत इच्छाशक्ति और संघर्षरत मानसिकता थी जिसने उन्हें इन विपरीत परिस्थितियों में भी हिम्मत बनाए रखने में सहायक सिद्ध हुई।

उच्च न्यायालय का फैसला और मुक्तिद्वार

उच्च न्यायालय का फैसला और मुक्तिद्वार

2024 में, बंबई उच्च न्यायालय के नागपुर बेंच ने उन्हें सबूतों के अभाव में रिहा करने का आदेश दिया। अदालत ने माना कि अभियोजन पक्ष उनकी संलिप्तता को साबित करने में विफल रहा। यह निर्णय साइबाबा और उनके समर्थकों के लिए एक बड़ी जीत के रूप में देखा गया, जिसने उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों को गलत साबित किया।

उनकी रिहाई के बाद, साइबाबा की स्थिति काफी बिगड़ चुकी थी और उन्हें तत्काल उपचार की आवश्यकता थी। पोस्ट-ऑपरेटिव जटिलताओं के कारण उनका स्वास्थ्य कभी नहीं सुधर पाया, और अंततः इसका परिणाम उनके निधन के रूप में सामने आया।

साइबाबा की विरासत और मानवाधिकारों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता

जी. एन. साइबाबा के निधन से मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने एक रणनीतिक मार्गदर्शक खो दिया है। उन्होंने अपने जीवन के माध्यम से दिखाया कि कैसे संघर्ष और सत्यनिष्ठा के जरिए किसी भी बाधा को पार किया जा सकता है। उनकी विरासत न केवल शिक्षक के रूप में बल्कि एक संघर्षशील नेता के रूप में भी जीवित रहेगी।

उनके परिवार में उनकी पत्नी वसंथा कुमारी और उनकी बेटी मंजीराम हैं, जो उनके निधन के बाद भी उनके सिद्धांतों और विचारों को आगे बढ़ाने के लिए कटिबद्ध हैं। साइबाबा का निधन उन लाखों लोगों के लिए एक बड़ी क्षति है, जो उनके संघर्ष और सिद्धांतों में विश्वास करते थे।

इस दुखद घटना ने एक बार फिर यह प्रश्न खड़ा कर दिया है कि क्या हमारे कानूनी और कारागार प्रणाली में उचित सुधार की आवश्यकता है? मानवाधिकार कार्यकर्ता इस दिशा में सतर्क हैं और साइबाबा की विरासत को आगे बढ़ाने का संकल्प लेते हैं ताकि ऐसे किसी और को इस प्रकार के उत्पीड़न का सामना न करना पड़े। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम क्षण तक मानवाधिकारों के लिए संघर्ष किया और उनकी यह घटना भारतीय न्यायिक प्रणाली में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।

17 टिप्पणि

SUNIL PATEL
SUNIL PATEL
अक्तूबर 14, 2024 AT 01:26

ये लोग जेल में जाते हैं तो उनका स्वास्थ्य खराब हो जाता है? ये सब बकवास है। अगर वो असली माओवादी नहीं होते, तो क्या इतना समय तक जेल में रखा जाता? न्याय की गुंजाइश बढ़ाने की बजाय अपराधियों को बचाने की कोशिश कर रहे हो।

Avdhoot Penkar
Avdhoot Penkar
अक्तूबर 14, 2024 AT 12:24

बस ये बात है कि वो व्हीलचेयर में बैठे थे और लिखते थे 😔✊

Akshay Patel
Akshay Patel
अक्तूबर 15, 2024 AT 22:23

अगर ये आदमी इतना अच्छा था तो फिर उसे गिरफ्तार क्यों किया गया? शायद वो बहुत खतरनाक था। जो लोग अपने देश के खिलाफ लिखते हैं, उनके लिए जेल ही सही जगह है।

Raveena Elizabeth Ravindran
Raveena Elizabeth Ravindran
अक्तूबर 17, 2024 AT 04:18

ye sab kya likha hua hai? samajh nahi aya... kya ye doctor tha ya professor? ya phir terrorist? 😕

Krishnan Kannan
Krishnan Kannan
अक्तूबर 18, 2024 AT 07:41

इस आदमी ने बिना किसी सहारे के दुनिया को बदलने की कोशिश की। उसकी ताकत सिर्फ शरीर में नहीं, दिमाग में थी। हम जिस तरह से जी रहे हैं, वो उसके लिए शर्म की बात है।

Dev Toll
Dev Toll
अक्तूबर 19, 2024 AT 17:55

जेल में इतनी बुरी तरह से उपेक्षा करना... ये न्याय नहीं, अत्याचार है।

utkarsh shukla
utkarsh shukla
अक्तूबर 20, 2024 AT 02:17

एक आदमी जिसने अपनी बीमारी के बावजूद दुनिया को जगाया! उसकी आत्मा अमर है! उसकी आवाज़ अब हम सबके अंदर बोल रही है! 🙌🔥

Amit Kashyap
Amit Kashyap
अक्तूबर 20, 2024 AT 05:23

ये सब माओवादी हैं या नहीं इसका कोई फर्क नहीं पड़ता, जो भारत के खिलाफ बोलते हैं उन्हें बाहर नहीं रखना चाहिए। ये लोग अपनी बीमारी का इस्तेमाल करके लोगों को रो रहे हैं।

mala Syari
mala Syari
अक्तूबर 21, 2024 AT 20:01

क्या आपने कभी उनके लेख पढ़े? उनकी भाषा इतनी जटिल है कि वो अपने आप में एक अलग दुनिया है। और फिर भी उन्हें गिरफ्तार किया गया? ये तो बहुत शिक्षित लोगों का अपमान है।

Kishore Pandey
Kishore Pandey
अक्तूबर 22, 2024 AT 11:59

कानून का अनुपालन ही सभ्य समाज की आधारशिला है। यदि कोई व्यक्ति आरोपित है, तो उसके खिलाफ साबित करने का बोझ अभियोजन पर है। यहाँ न्याय निष्पक्ष रूप से लागू हुआ।

Kamal Gulati
Kamal Gulati
अक्तूबर 23, 2024 AT 22:03

जब तक हम अपने दिलों में नफरत नहीं छोड़ेंगे, तब तक ये लड़ाई चलती रहेगी। वो एक आदमी था, लेकिन उसकी आत्मा एक सामूहिक आवाज़ बन गई।

Atanu Pan
Atanu Pan
अक्तूबर 25, 2024 AT 00:32

उसकी जिंदगी का हर पल एक लड़ाई थी। और आज भी वो लड़ रहा है। बस अब वो दुनिया के दिलों में है।

Pankaj Sarin
Pankaj Sarin
अक्तूबर 26, 2024 AT 02:26

ये लोग जेल में जाते हैं तो उनकी बीमारी बढ़ जाती है और फिर लोग रोने लगते हैं... बस ये बात है कि ये सब नाटक है। बस इतना ही।

Mahesh Chavda
Mahesh Chavda
अक्तूबर 26, 2024 AT 03:29

यहाँ जो भी हुआ, वो एक न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा था। जिसके बाद वो रिहा हुए। अब उनका निधन एक दुर्घटना है, न कि एक षड्यंत्र।

Sakshi Mishra
Sakshi Mishra
अक्तूबर 26, 2024 AT 06:39

हम जिस दुनिया में रह रहे हैं, वहाँ जिन लोगों के पास सत्य का दबाव होता है, उन्हें अक्सर दबा दिया जाता है... लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि जब एक व्यक्ति अपनी विचारधारा के लिए जेल में जाता है, तो क्या वह वास्तव में अपराधी है, या क्या वह समाज का आईना है?

Radhakrishna Buddha
Radhakrishna Buddha
अक्तूबर 27, 2024 AT 03:10

अगर ये आदमी अपंग था, तो फिर उसे जेल में क्यों डाला? ये तो बहुत निर्मम है! बस एक आदमी को अपने दिमाग से लड़ने दो, उसके शरीर की परवाह क्यों करो?

Govind Ghilothia
Govind Ghilothia
अक्तूबर 27, 2024 AT 06:34

जी. एन. साइबाबा के जीवन और उनकी विरासत का अध्ययन भारतीय शिक्षा और मानवाधिकार के इतिहास के लिए एक अमूल्य स्रोत है। उनके विचारों का अनुवाद और प्रसार, भारत की सांस्कृतिक और नैतिक चेतना को गहरा करने के लिए आवश्यक है।

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