तुंगभद्रा बांध का एक क्रेस्ट गेट चुरा, बाढ़ का खतरा बढ़ा
कर्नाटक के विजयनगर जिले में स्थित तुंगभद्रा बांध के एक क्रेस्ट गेट के अचानक बह जाने से शनिवार देर रात निचले इलाकों में बाढ़ का गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया। बांध में हालिया हफ्तों में क्षेत्र में भारी बारिश के कारण लगभग अपनी पूर्ण क्षमता तक पानी भर चुका था। इसमें करीब 100 टीएमसी (तिहत्तर लाख क्यूसेक) पानी संगृहीत था। हालांकि, अधिकारियों ने बांध की संरचनात्मक सुरक्षा को लेकर किसी भी प्रकार के खतरे से इनकार किया है और कहा है कि मरम्मत कार्य शुरू करने से पहले बांध से आधे से अधिक पानी निकालना आवश्यक होगा।
मरम्मत कार्य से पहले पानी का निकास आवश्यक
तुंगभद्रा बांध के 33 में से सभी क्रेस्ट गेट खोल दिए गए हैं, जिससे पानी का बहाव एक लाख क्यूसेक से अधिक हो गया है। इसमें से लगभग 35,000 क्यूसेक पानी केवल 19वें क्रेस्ट गेट से ही बह रहा है, जोकि क्षतिग्रस्त हो गया है। कन्नड एवं संस्कृति मंत्री शिवराज तंगडगी ने रविवार सुबह स्थल का दौरा किया और स्थिति का जायजा लिया। उन्होंने बताया कि बांध की मरम्मत कार्य से पहले लगभग 60-65 टीएमसी पानी निकालना पड़ेगा। उन्होंने कहा, 'पानी क्रेस्ट गेट से बहुत तीव्रता से बह रहा है। बांध के जल स्तर को 20 फीट कम करना होगा, तभी क्रेस्ट गेट की स्थिति का सही मूल्यांकन किया जा सकेगा।'
क्रेस्ट गेट के बहने का कारण एक चेन लिंक का टूटना बताया गया है, जिसे इसके संचालन के लिए प्रयोग किया जाता था। मंत्री ने यह भी सूचित किया है कि बल्लारी और रायचूर जिलों के निचले क्षेत्रों में स्थित गांवों को सतर्क कर दिया गया है ताकि कोई अनहोनी न हो।
प्रभावित गांवों तक कोई खतरा नहीं
यह घटना 1953 में बांध के निर्माण के बाद पहली बार हुई है। बांध अधिकारियों के अनुसार, निचले क्षेत्रों में स्थित गांवों के लिए अभी कोई खतरा नहीं है क्योंकि वहां 2.35 लाख क्यूसेक पानी सुरक्षित रूप से बहाने की पर्याप्त जगह है। बांध से पानी के निकास को धीरे-धीरे बढ़ाने का निर्णय लिया गया है ताकि मरम्मत कार्य जल्द से जल्द शुरू किया जा सके।
जल संसाधन मंत्री और उप मुख्यमंत्री डी. के. शिवकुमार भी बांध का दौरा करेंगे और स्थिति का आकलन करेंगे। बांध के सचिव द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि मई 2024 में सभी रखरखाव कार्य पूरे कर लिए गए थे और गेटों को सही ढंग से संचालित और जाँच लिया गया था। बयान में उल्लेख किया गया है, '10.08.2024 को 10 स्पिलवे गेटों को 1.5 फीट की ऊँचाई तक संचालित किया गया था और स्पिलवे गेट से 22890 क्यूसेक पानी का डिस्चार्ज हुआ।' इसी दौरान रात 10:50 बजे स्पिलवे गेट नंबर 19 बह गया।
सप्ताह भर में मरम्मत कार्य पूरा करने की योजना
बांध अधिकारियों के अनुसार, मरम्मत कार्य एक सप्ताह के भीतर पूरा कर लिया जाएगा। तुंगभद्रा बांध कर्नाटक राज्य के चार प्रमुख बांधों में से एक है जिनकी जल संग्रहण क्षमता 100 टीएमसी से अधिक है। वर्षों से सिल्ट (गाद) जमा होने के कारण बांध की कार्यक्षमता पर असर पड़ा है और इस समस्या का समाधान करने के लिए एक संतुलन जलाशय निर्माण की प्रस्तावना दी गई है।
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6 टिप्पणि
ये बांध... इतने सालों से चल रहा है, और अब एक चेन लिंक टूट गया? क्या हम इतने असहज हो गए हैं कि बुनियादी चीज़ों की देखभाल भी नहीं कर पा रहे? मरम्मत के लिए पानी निकालने की बात हो रही है, पर जल्दी से जल्दी करने की जगह, क्या हम इस तरह के खतरों को रोकने के लिए एक व्यवस्थित नीति नहीं बना सकते? ये सब तो एक बार फिर चिल्लाहट है, जबकि जमीन पर बाढ़ के लिए गांवों के लोग बेचारे डर रहे हैं।
अरे भाई, ये तो बांध का बाप बन गया है! एक गेट बह गया तो देश का नाम बदल दिया? ये लोग तो सोचते हैं कि बांध जिंदा है और उसका दिल धड़क रहा है! अगर इतना पानी है तो फिर गेट क्यों बहा? ये बात तो बहुत अजीब है... अगर ये बांध इतना अच्छा है, तो फिर ये सब लोग घर बैठे क्यों बैठे हैं? चलो, अब बांध के लिए एक नया गीत लिखते हैं: 'मेरा बांध, मेरा बाप, गेट बह गया तो बाप रे!' 😂
महोदयों और महोदयाएँ, इस घटना को एक व्यापक दृष्टिकोण से देखना आवश्यक है। तुंगभद्रा बांध, जो भारतीय जल संसाधनों के इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, उसकी विरासत को संरक्षित करने का दायित्व हम सभी पर है। इस घटना का कारण एक चेन लिंक का टूटना है, लेकिन इसके पीछे लंबे समय तक निर्माण, रखरखाव और निगरानी के अवहेलना का अभाव छिपा हुआ है। हमें अपने सामाजिक और प्राकृतिक विरासत के प्रति जागरूक होना चाहिए।
बांध का क्रेस्ट गेट बह गया? ओह बाप रे! ये तो बहुत बड़ी बात है! जैसे कोई अपने बेडरूम का दरवाजा खोल दे और फिर बताए कि 'हमने अभी तक लॉक नहीं लगाया था!' ये सब बातें तो बहुत सुंदर हैं, पर जब तक गांवों में लोग डर से नींद नहीं उड़ा रहे, तब तक ये सब बातें बस ट्विटर के लिए हैं। क्या हम अभी भी सोच रहे हैं कि ये बांध जादू का है? कुछ भी नहीं हुआ तो जैसे बांध को चाय देनी है।
कुछ लोग कह रहे हैं कि बांध का स्ट्रक्चर ठीक है... पर अगर एक चेन लिंक टूट गया तो ये तो बहुत बड़ा संकेत है। मैंने अपने दादाजी से सुना था कि पुराने समय में बांधों की देखभाल बहुत धीरे-धीरे होती थी, लोग रोज जाकर देखते थे। अब तो सिर्फ एक बार रिपोर्ट बना देते हैं और सो जाते हैं। अगर हम इतनी जल्दी बांध को ठीक करना चाहते हैं, तो पहले उसके आसपास के गांवों को असली सुरक्षा दो। बांध तो बांध है, लेकिन लोग जिंदा हैं।
ये सब बातें तो सही हैं, पर एक बात समझो: जब तक हम इन बांधों को बस एक टेक्निकल इंजीनियरिंग प्रोजेक्ट नहीं समझेंगे, बल्कि एक जीवित जीव के रूप में देखेंगे, तब तक ये बातें दोहराती रहेंगी। ये बांध हमारे बच्चों के भविष्य का हिस्सा है। हमें बस एक बार बैठकर सोचना होगा: क्या हम अपने बच्चों को ये बांध इतने अनुपयुक्त हालत में छोड़ना चाहते हैं? एक सप्ताह में मरम्मत हो जाएगी? शायद। लेकिन अगली बार? अगली बार कौन संभालेगा?