आंबेडकर पर शाह की टिप्पणी से उपजा विवाद
राजनीति के अखाड़े में कांग्रेस और बीजेपी के बीच घमासान का नया अध्याय शुरू हो गया है। इस बार केंद्र में हैं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खarge। राज्यसभा में शाह की एक टिप्पणी से शुरू हुए विवाद ने तूल पकड़ लिया है। इस दौरान मल्लिकार्जुन खarge ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से शाह को बर्खास्त करने की अत्यंत सख्त मांग की है। खarge का कहना है कि बीजेपी लगातार मनुस्मृति के मूल्यों को बढ़ावा दे रही है, जो संविधान के खिलाफ है।
क्या कहा था अमित शाह ने?
बातचीत की शुरुआत तब हुई जब अमित शाह ने राज्यसभा में कहा कि कांग्रेस ने आंबेडकर का नाम लेना एक फैशन बना लिया है। उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस ने भगवान का नाम भी उतनी बार लिया होता, जितनी बार आंबेडकर का लेती है, तो स्वर्ग में जगह बना लेती। शाह के इस बयान ने न सिर्फ राजनीतिक गलियारों में बल्कि देशभर में हड़कंप मचा दिया है।
खarge का तीखा प्रहार
खarge ने तीखे स्वर में शाह की इस टिप्पणी की आलोचना की। उन्होंने इसे आंबेडकर और दलित समाज के लिए अत्यंत अपमानजनक और विषैले शब्दों का प्रयोग करते हुए बताया। खarge का आरोप है कि अमित शाह की ये टिप्पणी भारत के दलित समाज के उपेक्षा का प्रमाण है और सीधे-सीधे आंबेडकर का अपमान है। उन्होंने यह भी कहा कि बीजेपी संविधान की जगह जातिवादी विचारों को प्राथमिकता देती है।
विशेषाधिकार हनन का नोटिस
खarge ने अमित शाह के खिलाफ राज्यसभा में विशेषाधिकार हनन का नोटिस भी दिया है। उनका कहना है कि शाह के बयान में हानिकारक और अपमानजनक कृत्य नजर आता है जो सदन की गरिमा के खिलाफ है। खarge ने दावा किया है कि शाह के बयान को सदन की उपेक्षा और विशेषाधिकार का उल्लंघन माना जाना चाहिए।
प्रधानमंत्री मोदी की प्रतिक्रिया
जब यह प्रकरण बढ़ने लगा तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमित शाह का बचाव करते हुए कहा कि कांग्रेस खुद ही आंबेडकर का नाम गिराने का प्रयास कर रही है। मोदी का कहना है कि शाह ने कुछ भी गलत नहीं कहा, और यह कांग्रेस का एक पुराना हथकंडा है। इसके साथ ही पीएम ने बताया कि बीजेपी ही थी जिसने आंबेडकर को भारत रत्न से सम्मानित किया, जबकि कांग्रेस ने लंबे समय तक उसे नजरअंदाज किया था।
भविष्य की स्थिति
यदि पीएम मोदी अमित शाह के खिलाफ कार्रवाई नहीं करते हैं, तो खarge ने व्यापक प्रदर्शन की चेतावनी दी है। उनका कहना है कि लोग डॉ. आंबेडकर के लिए अपने प्राणों की आहुति देने को तैयार हैं। ऐसे में इस मामले का क्या रूप लेगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन यह स्पष्ट है कि यह मुद्दा अब केवल राजनीतिक बहस का नहीं रहा, बल्कि सामाजिक स्तर पर भी गहरी छाप छोड़ सकता है।
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11 टिप्पणि
ये सब राजनीति का खेल है भाई 😅 अमित शाह ने जो कहा वो सच है, कांग्रेस बस फैशन के लिए आंबेडकर का नाम लेती है
आंबेडकर के नाम का दुरुपयोग करने वालों को सबक सिखाना जरूरी है। शाह ने सही कहा।
इस बहस में दोनों पक्ष अपने-अपने नारे लगा रहे हैं, लेकिन असली सवाल ये है कि क्या हम आंबेडकर के विचारों को वास्तविक रूप से लागू कर रहे हैं? नाम लेने से ज्यादा ज़रूरी है उनके सिद्धांतों को राजनीति और समाज में जीवित करना।
अगर हम उनकी अवधारणा जैसे समानता, ज्ञान की शक्ति, और संविधान की आत्मा को अपनाते, तो ऐसे शब्दों की जगह हम नीतिगत बदलाव पर चर्चा करते।
कांग्रेस जो भी कह रही है, उसका असर तभी होगा जब वो अपने विधानसभाओं में दलित शिक्षा के लिए बजट बढ़ाए।
बीजेपी जो भी कर रही है, उसका मायने तभी होगा जब वो जाति-आधारित भेदभाव के खिलाफ असली कार्रवाई करे।
हम सब बस एक-दूसरे को टारगेट कर रहे हैं, जबकि वास्तविक समस्याएं बढ़ रही हैं।
आंबेडकर की याद में बस नारे नहीं, नीतियां बनानी चाहिए।
मैं नहीं चाहता कि उनका नाम राजनीतिक बहस का टूल बन जाए।
हमें उनकी विरासत को जीवित रखना होगा, न कि उसे अपने दल के लिए एक शील्ड बनाना।
क्या हमने कभी सोचा कि आंबेडकर आज इस बहस को कैसे देखते? शायद वो हंस रहे होंगे कि हम उनके नाम के चक्कर में अपने असली लक्ष्य भूल गए।
ये सब तो बस एक बड़ा धोखा है।
सच तो ये है कि दोनों पार्टियां अपने-अपने लाभ के लिए आंबेडकर का नाम ले रही हैं। असली समाधान तो शिक्षा और समानता के लिए काम करना है, न कि बयानबाजी।
कांग्रेस के लोग तो हमेशा बाहर से भारत को बदनाम करने की कोशिश करते हैं। शाह ने बिल्कुल सही कहा। ये देश अपने नेताओं को नहीं, बल्कि अपने सिद्धांतों को बचाएगा।
क्या हम वाकई आंबेडकर के विचारों को समझते हैं? या बस उनका नाम एक शब्द के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं? उन्होंने ज्ञान को आधार बनाया, न कि नारे। क्या हम उनकी जगह पर खड़े होकर उनके लिए लड़ रहे हैं? या बस अपने भावनात्मक आरोपों के लिए उनका नाम ले रहे हैं?
आंबेडकर के नाम का राजनीतिक दुरुपयोग एक बड़ी समस्या है। दोनों पार्टियों को इसे बंद करना चाहिए।
मुझे लगता है कि इस बहस में हम एक बहुत बड़ा मुद्दा छूट गया। आंबेडकर ने संविधान को जीवित रखने के लिए नहीं, बल्कि उसे बदलने के लिए लड़ा था। क्या हम उनकी वास्तविक विरासत को समझ रहे हैं? या बस उनके नाम का इस्तेमाल कर रहे हैं?
अगर शाह ने गलत कहा तो कांग्रेस ने क्यों इतना बड़ा धमाका किया? 😏 शायद वो खुद झूठ बोल रही हैं!
कांग्रेस के लोग तो हमेशा नारे लगाते हैं बस... असली काम तो कभी नहीं करते 😒
मैं तो ये कहूंगा कि दोनों पार्टियों को अपनी बात बनाने की जगह, आंबेडकर के विचारों को अपनाने की कोशिश करनी चाहिए। नारे से कुछ नहीं होगा।