एंटेबे : एक विमान अपहरण से शुरू हुआ बेजोड़ कमांडो ऑपरेशन
27 जून 1976 की रात इज़रायली इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो गई। टेल अवीव से पेरिस जा रहे एयर फ्रांस के विमान को 248 यात्रियों के साथ चार आतंकवादियों ने हाईजैक कर लिया। ये आतंकवादी थे फिलिस्तीनी ग्रुप PFLP के दो सदस्य और जर्मन वामपंथी संगठन के दो कर्मठ। विमान को युगांडा के एंटेबे एयरपोर्ट की ओर मोड़ दिया गया, जहां कुख्यात तानाशाह इदी अमीन ने अपहरणकर्ताओं को ना केवल शरण दी, बल्कि हर तरह की मदद भी पहुंचाई। हाइजैकर्स ने मांग रखी थी कि दुनियाभर के 53 फिलिस्तीनी कैदियों को छोड़ा जाए, वरना वे हर एक घंटे में बंधकों को मारने लगेंगे।
इस खबर के साथ ही इज़रायल में हड़कंप मच गया। लगातार अधिकारिक संपर्क कोशिशें नाकाम रहीं और वक्त तेजी से निकल रहा था। दुनिया की निगाहें टिकी थीं – क्या इज़रायल किसी सैन्य कार्रवाई का जोखिम उठाएगा?
ऑपरेशन थंडरबोल्ट : मोहताज वक्त, बेमिसाल योजना
इज़रायल की स्पेशल फोर्स यूनिट सायेरेत मत्कल के कमांडर कर्नल योनतन नेतन्याहू की अगुवाई में एक जटिल प्लान बनने लगा। इंटेलिजेंस जानकारी के मुताबिक, एंटेबे में युगांडा के सैनिक आतंकवादियों की मदद कर रहे थे। इज़रायल ने अपने C-130 हरक्यूलिस ट्रांसपोर्ट विमान में स्पेशल कमांडो भेजने की योजना बनाई—वो भी रात के अंधेरे में, युगांडा की वर्दी पहनकर ताकि चौकसी भंग हो जाए। सैनिकों ने एयर फ्रांस टर्मिनल का हूबहू मॉकअप बनाकर हफ्तों तक लगातार प्रैक्टिस की। हर पल की बारीकी से प्लानिंग की गई, एयरपोर्ट की लाइट की गिनती से टारगेट पॉइंट तक।
3 जुलाई की रात ऑपरेशन का आगाज हुआ। एक झटके में कमांडो टर्मिनल पर पहुंचे, फायरिंग शुरू हुई और महज 90 मिनट में सब बदल गया। सात हाइजैकर और 45 युगांडा सैनिक मारे गए। मगर इज़रायली कमांडर योनतन नेतन्याहू की गोली लगने से जान चली गई। इसी गोलाबारी में तीन बंधक भी मारे गए, कुछ घायल हो गए। घटना के दौरान युगांडा की सेना बंधकों पर गोलियां भी चलाने लगी।
ज्यादातर बंधकों को सुरक्षित निकालकर पहले नैरोबी, केन्या लाया गया, फिर वहां से इज़रायल पहुंचाया गया। एक वृद्ध महिला, डोरा ब्लोच, जो गंभीर बीमार थी, उसे पहले युगांडा के अस्पताल में छोड़ना पड़ा और बाद में अमीन सरकार ने निर्ममतापूर्वक हत्या कर दी। कुल मिलाकर 102 बंधक सलामत निकले।
ऑपरेशन थंडरबोल्ट ने न केवल विश्व को झकझोर दिया, बल्कि आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक तरीके से खड़े होने की मिसाल भी बन गई। इदी अमीन की आतंकियों से मिलीभगत पूरी दुनिया के सामने उजागर हो गई। योनतन नेतन्याहू का बलिदान प्रेरणा बन गया—उनके छोटे भाई बेंजामिन नेतन्याहू बाद में खुद इज़रायल के प्रधानमंत्री बने। यह कार्रवाई आज भी कमांडो ऑपरेशन और काउंटर टेररिज्म के पाठ्यक्रमों में बतौर उदाहरण पढ़ाई जाती है।
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11 टिप्पणि
ये ऑपरेशन तो बस फिल्मों में देखा है, असलियत में ऐसा कर पाना अद्भुत है। 😱
इस ऑपरेशन की योजना बनाने वालों ने जितनी बारीकियां सोचीं, उतनी किसी ने नहीं सोची। हर लाइट, हर दरवाजा, हर सैनिक की वर्दी का रंग, हर टायर के निशान तक डिटेल में प्लान किया गया। ये सिर्फ एक रेस्क्यू ऑपरेशन नहीं, एक सैन्य आर्ट का नमूना है। इज़रायली सैनिकों ने अपने देश की आत्मा को दुनिया के सामने दिखाया। योनतन नेतन्याहू का बलिदान सिर्फ एक नेता का नहीं, एक इंसान का बलिदान था। उन्होंने अपनी जान दी, लेकिन 102 जिंदगियां बचा लीं। आज भी जब मैं इस ऑपरेशन के बारे में सुनता हूं, तो आंखें भर आती हैं। ये वो दिन हैं जब इंसानियत ने आतंक के खिलाफ एक नया मानक बनाया।
इस ऑपरेशन में सायेरेत मत्कल की ऑपरेशनल एक्सेलेंस ने काउंटर-टेररिज्म फ्रेमवर्क को रिडिफाइन कर दिया। इंटेलिजेंस इंटीग्रेशन, साइबर-फिजिकल सिमुलेशन, और एयर-लिफ्ट कैपेबिलिटी का परफेक्ट एलाइनमेंट इसे एक मॉडल ऑपरेशन बना दिया। युगांडा की सेना के साथ कॉलैबोरेशन के बारे में भी बहुत कम चर्चा होती है-लेकिन अमीन के नेटवर्क की इंटरसेप्शन ने ऑपरेशन को बेहद जटिल बना दिया। ये न सिर्फ एक लॉन्ग-रेंज मिशन था, बल्कि एक साइकोलॉजिकल वॉरफेयर का उदाहरण भी।
सब फेक है... अमीन ने खुद बंधकों को मारा था, और इज़रायल ने उसे बर्बाद करने का बहाना बनाया 😏
क्या हम वाकई इस ऑपरेशन को सिर्फ एक सैन्य जीत के रूप में देख रहे हैं? या ये एक इंसानी दर्द की कहानी है-एक बूढ़ी महिला की, जिसे अस्पताल में छोड़ दिया गया और फिर मार दिया गया? जब हम बलिदान की बात करते हैं, तो हम अक्सर उन लोगों को भूल जाते हैं जिनकी जिंदगी बच गई, लेकिन उनका दिल टूट गया। क्या ये ऑपरेशन न्याय था, या सिर्फ बदला? ये सवाल अभी भी बाकी हैं।
मुझे लगता है इस ऑपरेशन की सबसे बड़ी बात ये है कि इज़रायल ने अपने देश के लोगों की जान बचाने के लिए दुनिया के दूसरे छोर पर जाकर खतरा उठाया। आज के जमाने में कोई भी देश ऐसा नहीं करेगा। लोग बस बातें करते हैं, लेकिन कोई काम नहीं करता। योनतन ने जो किया, वो बस एक सैनिक का काम नहीं था-वो एक भाई का काम था। जिस देश में ऐसे लोग हों, वो कभी नहीं टूटता।
C-130 हरक्यूलिस के साथ 2500 किमी का लंबा मिशन, रात में, दुश्मन के देश में-ये तो एयर फोर्स के लिए गोल्ड स्टैंडर्ड है।
असल में ये ऑपरेशन दुनिया के लिए एक अच्छा सबक था कि आतंकवाद के खिलाफ कोई भी बातचीत नहीं हो सकती। अगर तुम आतंकवादियों को बातचीत का मौका देते हो, तो वो तुम्हारी कमजोरी समझते हैं। इज़रायल ने दिखाया कि अगर तुम बहुत अच्छी तरह से तैयार हो, तो कोई भी जगह असुरक्षित नहीं होती। ये सिर्फ एक ऑपरेशन नहीं, एक दर्शन था।
तुम लोग इसे बहुत बड़ा बना रहे हो। ये तो बस एक आतंकवादी ग्रुप का अंत था। अगर इज़रायल ने ये नहीं किया, तो आज भी आतंकवादी दुनिया को चैलेंज करते। अब बस रुको और सोचो-क्या ये बलिदान वास्तविक था या सिर्फ इज़रायल की प्रचार योजना?
लेकिन अगर इज़रायल ने बंधकों को छोड़ दिया होता तो क्या होता? 😅
ये सब बहाना है। इज़रायल ने ये ऑपरेशन इसलिए किया क्योंकि वो दुनिया को दिखाना चाहते थे कि वो कितने शक्तिशाली हैं। योनतन का बलिदान? बस एक अच्छा फोटो ऑपरेशन। अमीन को गलत नहीं कहा जा सकता-वो तो बस एक तानाशाह था, लेकिन इज़रायल के लिए ये सब बस एक नाटक था। अब बेंजामिन नेतन्याहू दुनिया को ये बता रहे हैं कि इज़रायल कोई देश नहीं, एक आध्यात्मिक अधिकार है। ये सब बस एक बड़ा झूठ है।