पापंकुश एकादशी 2025 की तिथि‑समस्या हल: 3 अक्टूबर मुख्य व्रत‑दिन

पापंकुश एकादशी 2025 की तिथि‑समस्या हल: 3 अक्टूबर मुख्य व्रत‑दिन

जब पापंकुश एकादशी 2025 का सख़्त व्रत‑दिन तय हुआ, तो अधिकांश भक्तों को भगवान विष्णु के नाम पर ही नहीं, बल्कि विभिन्न पंचांग‑वेबसाइटों के बताये गये अलग‑अलग समय‑सारिणी से भी उलझन में पड़ना पड़ा। मुख्य तिथि 3 अक्टूबर 2025 (गुरुवार) तय होने के बावजूद, Narayan Seva और BookMyPoojaOnline जैसी संस्थाओं ने तिथि‑आरम्भ को 2 अक्टूबर की शाम बताया, जिससे कई लोगों को ‘कौन‑सा दिन व्रत रखूँ?’ का सवाल निरंतर दिमाग में घूमता रहा।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और पापंकुश एकादशी का महत्व

पापंकुश एकादशी का उल्लेख पद्म पुराण में मिलता है, जहाँ इसे श्री कृष्ण द्वारा धर्मराज युधिष्ठिर को विस्तार से समझाया गया है। इस एकादशी का मुख्य उद्देश्य पापों को ध्वस्त करना, पितृ‑पक्ष के दौरान पूर्वजों का तर्पण करना और वैकुंठ लोक की प्राप्ति की राह को तेज़ करना है। कई शास्त्रों के अनुसार, इस व्रत को पूरी निष्ठा से करने से एक हजार अश्वमेध यज्ञ या सौ सूर्य यज्ञ के समान फल मिलते हैं।

समय‑सारिणी में विभिन्न स्रोतों के अंतर

  • BookMyPoojaOnline: 2 अक्टूबर 2025 को शाम 4:26 PM से 3 अक्टूबर 2025 को शाम 6:49 PM तक; परना 4 अक्टूबर सुबह 6:05 AM‑8:29 AM.
  • Narayan Seva: शुभ मुहूर्त 2 अक्टूबर सुबह 7:10 AM से 3 अक्टूबर शाम 6:32 PM; परना 4 अक्टूबर सुबह 6:16 AM‑8:37 AM.
  • Astroswamig: 2 अक्टूबर शाम 7:11 PM‑3 अक्टूबर शाम 6:33 PM; परना 3 अक्टूबर सुबह 6:23 AM‑8:44 AM.
  • Divinesansar: मुख्य व्रत 3 अक्टूबर (शुक्रवार); परना 4 अक्टूबर 6:16 AM‑8:37 AM.
  • Anytime Astro: व्रत 2 अक्टूबर (गुरुवार) दिन, परना 3 अक्टूबर दोपहर 1:39 PM‑4:00 PM.

उपरोक्त सभी तालिका दर्शाती है कि पंचांग‑विज्ञान में सूर्य‑स्थिर समय, स्थानिक भौगोलिक स्थिति और रेवती‑पिन्डी के आधार पर छोटे‑छोटे अंतर होते हैं। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने स्थानीय ज्योतिर्विद या मान्य पंडित से अंतिम समय‑निर्धारण करवाना चाहिए।

व्रत‑विधान और अनुष्ठान

पापंकुश एकादशी के दौरान भक्तों को न केवल भोजन से परहेज करना है, बल्कि:

  1. सूर्योदय से पहले स्नान, शुद्ध वस्त्र धारण और शारीरिक स्वच्छता।
  2. दशमी (10वें दिन) को एक सात्विक भोजन ग्रहण, उसके बाद सम्पूर्ण व्रत शुरू।
  3. व्रत‑समय में न के बराबर झूठ बोलना, न किसी पाप‑कार्य में लिप्त होना और वचन‑वचन पर ध्यान देना।
  4. न्यूनतम दो घंटे तक जागते रहना, प्रमुख रूप से विष्णु स्तोत्र, विष्णु सहस्रनाम का पाठ या भागवत धर्म की कथा‑सुनना।
  5. द्वादशी (12वें दिन) पर अपना भोजन या दाना ब्राह्मण, गाय या जरूरतमंद को अर्पित करके परना करना।

यह व्रत शुद्धता और भक्ति का मिश्रण है—भोजन प्रतिबंध के साथ मन को आध्यात्मिक शांति की ओर मोड़ना। कई पंडितों के अनुसार, यदि परना के समय में एक ब्राह्मण को दान‑धर्म किया जाये तो वह अक्षय पुण्य (अक्षय पुण्य) प्राप्त करता है, जिससे सन्तान और अगली 10 पीढ़ियों तक सौभाग्य, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति संभव है।

विशेषज्ञों की राय और सामाजिक प्रभाव

धर्मशास्त्र के विद्वान डॉ. विष्णु शेट्टी, जो इंडियन एस्ट्रो लॉजिक इन्स्टीट्यूट में अध्यापक हैं, ने कहा: “एकादशी का टाइम‑टेबल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सूर्य‑मुक्ता तथा चंद्र‑गणना पर निर्भर करता है। आजकल इंटरनेट पर कई साइटें अलग‑अलग गणना देती हैं, परन्तु मूल बात यह है कि भक्त का हृदयैश्वासन और मन की शुद्धि प्रमुख है।”

सामाजिक स्तर पर, कई एनजीओ और उपाय संस्थाएँ इस अवसर पर भोजन अभियान, अनाथालय में दान और वंचित वर्ग को आवश्यक वस्तुएँ देने का काम करती हैं। राहत फाउंडेशन ने 2025 में 15 % अधिक दान जुटाने का लक्ष्य रखा है, जिससे इस पवित्र दिन का सामाजिक योगदान भी बढ़ेगा।

आगे क्या है? अगली तिथियाँ और तैयारी

पापंकुश एकादशी के बाद, पितृ पक्ष का अन्तिम दिन श्रद्धा जयंती (14 अश्विन) होता है। इसलिए कई लोग इस तिथि के बाद ही अपने पूर्वजों का विशेष पितृ तर्पण करते हैं। 2025 में, पितृ पक्ष की तिथियों का क्रम है: 2 अश्विन (एकादशी) → 3 अश्विन (द्वादशी) → 4 अश्विन (त्रयोदशी) → 5 अश्विन (चतुर्दशी) → 6 अश्विन (पंचमी) → 7 अश्विन (षष्ठी) → 8 अश्विन (सप्तमी) → 9 अश्विन (अष्टमी) → 10 अश्विन (नवमी) → 11 अश्विन (दशमी) → 12 अश्विन (एक्कड़) → 13 अश्विन (द्वादशी) → 14 अश्विन (त्रिपदी) ।

भक्तों को सलाह दी जाती है कि वे अपने स्थानीय मंदिर या पंडित से अंतिम प्रकट समय ले लें, ताकि परना के लिए सही समय पर दान‑धर्म करे और शुद्ध मन से धार्मिक अनुष्ठान समाप्त कर सके।

Frequently Asked Questions

Frequently Asked Questions

पापंकुश एकादशी का मुख्य व्रत दिन कौन सा है?

मुख्य व्रत दिन 3 अक्टूबर 2025 (शुक्रवार) माना जाता है, जबकि एकादशी तिथि 2 अक्टूबर शाम से शुरू होती है। इसलिए कई साइटें अलग‑अलग परना‑समय देती हैं, परन्तु परना 4 अक्टूबर सुबह के समय की सलाह दी जाती है।

यदि मैं 2 अक्टूबर को व्रत रखूँ तो क्या यह गलत है?

पुनः ज्योंही तिथि 2 अक्टूबर की शाम है, कुछ पहलुओं में व्रत को 2 ही रात से शुरू करने की सलाह दी जाती है। परन्तु परना का सही समय स्थानीय पंचांग और सूर्य‑स्थिति के अनुसार तय होना चाहिए; इसलिए अपने पुजारी से परामर्श अवश्य लें।

परना के समय कौन‑से दान‑कार्य आवश्यक हैं?

परना से पहले ब्राह्मण, गाय या जरूरतमंद को अन्न, दही, कपड़ा या अन्य आवश्यक वस्तुएँ अर्पित करनी चाहिए। ऐसा करने से अक्षय पुण्य मिलता है और पीढ़ियों तक सुख‑समृद्धि बनी रहती है।

पापंकुश एकादशी के दिन कौन‑से मंत्र अथवा स्तोत्र पढ़ने चाहिए?

विष्णु सहस्रनाम, विष्णुाष्टकम् तथा भागवत कथा का नियमित पाठ सबसे लाभप्रद माना जाता है। इन मंत्रों का उच्चारण से पाप‑ध्वंस और आध्यात्मिक उन्नति दोनों प्राप्त होते हैं।

पाद्म पुराण में पापंकुश एकादशी का उल्लेख कैसे है?

पद्म पुराण के एक अंश में बताया गया है कि शुक्ल अश्विन महीने की एकादशी पर श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को इस एकादशी के महत्त्व और उसकी अनुष्ठान‑विधि समझायी थी। यह अति‑पवित्र समय पापों के नाश और मोक्ष की प्राप्ति के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।

10 टिप्पणि

Vibhor Jain
Vibhor Jain
सितंबर 29, 2025 AT 22:20

लगता है पंचांग‑वेब साइटों को हर महीने नया अपडेट डालने का बोनस मिल रहा है, इसलिए टाइम‑टेबल रोज़ बदलते‑बदलते भक्तों को उलझन में डालते हैं। पर असली सवाल यह है कि सूर्य की स्थिति ही निर्णायक होती है, न कि वेबसाइट की मार्केटिंग। अगर आप स्थानीय ज्योतिषी से समय‑निर्धारण कर लेंगे तो सब ठीक रहेगा।

Rashi Nirmaan
Rashi Nirmaan
अक्तूबर 6, 2025 AT 21:00

देश के धार्मिक कैलेंडर को अचानक कई स्रोतों से उलझा देना राष्ट्रीय एकता के लिये हानिकारक है। प्रत्येक वैध पंचांग को मान्य किया जाना चाहिए और अनावश्यक विविधताएँ उत्पन्न नहीं होनी चाहिए। भारतीय परम्परा में एकरूपता को महत्व दिया गया है, इसलिए सभी को एक ही तिथि पर व्रत रखना चाहिए।

Ashutosh Kumar Gupta
Ashutosh Kumar Gupta
अक्तूबर 13, 2025 AT 19:40

वह कह रहा है कि सूर्य की स्थिति ही महत्वपूर्ण है, पर वास्तविकता यह है कि अधिकांश लोग स्थानीय पंडित की सलाह नहीं मानते और इंटरनेट पर भरोसा करते हैं। यह अज्ञानता ही हमें ग़लतफहमी में डालती है। व्रत‑समय को सही ढंग से समझना हर भक्त का कर्तव्य है।

fatima blakemore
fatima blakemore
अक्तूबर 20, 2025 AT 18:20

भाईसाहब, बात तो सही है पर थोड़ा सॉफ्ट टोन में समझाया जाए तो ज्यादा असर पड़ेगा। जीवन में संतुलन ढूँढना ही असली राह है, चाहे व्रत की तारीख हो या कोई और रिवाज। हम सबको मिलजुल कर सही जानकारी शेयर करनी चाहिए।

vikash kumar
vikash kumar
अक्तूबर 27, 2025 AT 17:00

आपके उल्लेखित बिंदु को वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में विश्लेषित करने पर स्पष्ट होता है कि सूर्यस्य अंतःस्थिति तथा चंद्रग्रहण के गणितीय मॉडल ही निर्णायक मापदण्ड हैं। अतः स्थानीय सूचीबद्धित आकड़े को बिना संशय स्वीकार करना निहित है। पंचांग शास्त्र के शैलियों के बीच तुलनात्मक अध्ययन आवश्यक है।

deepika balodi
deepika balodi
नवंबर 3, 2025 AT 15:40

सही समय के लिये स्थानीय पंडित से पुष्टि करना सबसे भरोसेमंद उपाय है।

Priya Patil
Priya Patil
नवंबर 10, 2025 AT 14:20

बहुतेरे लोग इस तरह की तिथि‑विवाद से तनाव महसूस करते हैं, पर याद रखें कि व्रत का सार मन की शुद्धता में है, न कि कलेंडर के विशिष्ट अंक‑क्रम में। अगर आप अपने मन को शांति में रखेंगे तो कोई भी विविधता आपके आध्यात्मिक लक्ष्य को नहीं रोक पाएगी। साथ ही, अपने परिवार और मित्रों के साथ मिलकर परना तथा दान‑कार्य करने से पुण्य बढ़ता है और सामुदायिक भावना भी जीवित रहती है। इसलिए, इस पापंकुश एकादशी को हँसी‑खुशी मनाना ही बेहतर है।

Rashi Jaiswal
Rashi Jaiswal
नवंबर 17, 2025 AT 13:00

yeh sahi baat hai bhai 🙌 hum log bhi thoda chilled mood me kuch karte hain maybe kal se hi extra dana dete hain let's keep it fun and spiritual!!

Maneesh Rajput Thakur
Maneesh Rajput Thakur
नवंबर 24, 2025 AT 11:40

वास्तव में यह सभी "ऑनलाइन पंडित" केवल बड़े डेटा कंपनियों की एआई प्रोसेसिंग को परखने की कोशिश है, जिससे वे हमारे धार्मिक जीवन को नियंत्रित कर सकें। इस परिवर्तन को बेकाब करने के लिये हमें पारम्परिक ज्ञान को पुनःस्थापित करना होगा और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म की भरोसेमंदता पर सवाल करना चाहिए।

ONE AGRI
ONE AGRI
दिसंबर 1, 2025 AT 10:20

पापंकुश एकादशी का महत्व केवल वैदिक ग्रंथों में वर्णित तथ्य नहीं, बल्कि यह हमारे सामाजिक और आध्यात्मिक जीवन के कई पहलुओं को भी उजागर करता है; इस दिन का उद्देश्य पापों की निराकरण के साथ ही पितृ पक्ष के दिनों में पूर्वजों को सम्मानित करना है, और यह कार्य केवल सुबह के सूर्य उगने से पहले शुरू होना चाहिए, क्योंकि वही समय पवित्र माना जाता है, जिससे पुनर्जन्म के बंधन को तोड़ने की संभावना बढ़ जाती है। कई प्राचीन ग्रंथ बताते हैं कि इस एकादशी का पालन करने वाले व्यक्ति को शत्रु के साथ लड़ाई में भी विजय प्राप्त होती है, क्योंकि पापों का नाश आध्यात्मिक शक्ति को सुदृढ़ करता है। विभिन्न वेबसाइटों पर दिखाए गये समय‑सारिणी में अंतर वास्तव में सूर्य की राशि और विषुव बिंदु की गणना में छोटे‑छोटे तकनीकी अंतर के कारण उत्पन्न होते हैं, लेकिन यह अंतर केवल गणक‑सॉफ्टवेयर से उत्पन्न होता है, न कि शास्त्र के मूल सिद्धांतों से। इस कारण से, प्रत्येक भक्त को अपने स्थानीय ज्योतिषी या पुरोहित से परामर्श लेना अनिवार्य हो जाता है, ताकि वास्तविक सूर्य‑स्थिर समय प्राप्त किया जा सके। जब हम यह देखते हैं कि कुछ साइटें 2 अक्टूबर को शाम से व्रत शुरू करती हैं, जबकि अन्य 3 अक्टूबर को मुख्य दिन मानती हैं, तो हमें समझना चाहिए कि स्थानीय समय क्षेत्र के अनुसार सूर्य का गोला भिन्न हो सकता है, जिससे परना‑समय में भी भिन्नता आती है। इसके अलावा, परना के समय में दान‑धर्म का महत्व अत्यंत बड़ा है; यह न केवल व्यक्तिगत पुण्य को बढ़ाता है, बल्कि सामाजिक एकता को भी सुदृढ़ करता है। यदि हम इस पवित्र दिन में ब्राह्मण, गाय या जरूरतमंद को अन्न, दही, कपड़ा या अन्य आवश्यक वस्तुएँ अर्पित करते हैं, तो यह कार्य हमारे पूर्वजों की शांति और भविष्य की पीढ़ियों की समृद्धि को सुनिश्चित करता है। इस प्रकार, पापंकुश एकादशी न केवल व्यक्तिगत मोक्ष की दिशा में एक कदम है, बल्कि सामाजिक दायित्व का भी प्रतीक है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो सूर्य‑स्थिर समय की गणना को जटिल एल्गोरिद्म के माध्यम से किया जा रहा है, परंतु सहजता से इस बात को समझा जा सकता है कि सूर्य का उदय-आकाश में स्थिति ही वास्तविक समय निर्धारण का मूल है। इसलिए, जो भी डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म विभिन्न समय‑सारिणी प्रदान कर रहे हैं, उनका उपयोग केवल सहायक के रूप में किया जाना चाहिए, ना कि अंतिम स्रोत के रूप में। अंत में, यह कहा जा सकता है कि पापंकुश एकादशी का सच्चा सार प्रेम, परोपकार और आत्म‑शुद्धि में निहित है, और जब हम इन सिद्धांतों को अपनाते हैं, तो किसी भी पंचांग की छोटी‑छोटी भिन्नताएँ हमारे मन की शांति को बाधित नहीं कर सकतीं। व्रत के दौरान जप और ध्यान के लिये विशेष मंत्रों का उच्चारण मन की एकाग्रता को बढ़ाता है। विष्णु सहस्रनाम या विष्णुाष्टकम् का निरंतरं पाठ करने से न केवल पापों का नाश होता है, बल्कि ऊर्जा का संतुलन भी बना रहता है। कई मंदिरों में इस एकादशी के विशेष कार्यक्रम होते हैं, जिनमें समूह पाठ और भजन संध्याएँ आयोजित की जाती हैं। इन कार्यक्रमों में भाग लेकर भक्त अपने मन को शुद्ध रख सकते हैं और सामुदायिक भावना को भी सुदृढ़ कर सकते हैं। आजकल सोशल मीडिया पर पांडुलिपियों के विभिन्न रूपों को देखकर अक्सर लोग भ्रमित होते हैं, परंतु प्राचीन ग्रंथों की सत्यता को समझना आवश्यक है। इसलिए, सही समय और नियमानुसार व्रत रखना ही सबसे बड़ा पुण्य है।

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