विजय सेतुपति की 50वीं फिल्म महाराजा का तेलुगु समीक्षा और रेटिंग

विजय सेतुपति की 50वीं फिल्म महाराजा का तेलुगु समीक्षा और रेटिंग

विजय सेतुपति की 50वीं फिल्म 'महाराजा' का तेलुगु में समीक्षा

विजय सेतुपति की 50वीं फिल्म 'महाराजा' का तेलुगु में बड़ी धूमधाम से स्वागत किया गया। इस फिल्म में विजय सेतुपति, जो इंडस्ट्री में अपनी प्रतिभा और अभूतपूर्व अभिनय के लिए जाने जाते हैं, ने एक बार फिर से अपने अभिनय कौशल का लोहा मनवाया है।

कहानी की शुरूआत

फिल्म की कहानी एक सामान्य व्यक्ति महाराजा के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक सैलून चलाता है और अपनी छोटी बेटी के साथ रहता है। महाराजा की पत्नी की एक हादसे में मौत हो जाती है, जिसमें एक टिन का बक्सा भी शामिल होता है। इस हादसे के बाद महाराजा ने उस बक्से को 'लक्ष्मी' नाम दिया और उससे बेहद प्यार करने लगा।

जब वह बक्सा गायब हो जाता है, तो महाराजा पुलिस के पास इसकी शिकायत करता है। पुलिस, जो महाराजा के दोस्त के परिचित सेल्वम के नेतृत्व में होती है, इस अजीबोगरीब शिकायत को गंभीरता से लेती है और बक्से की तलाश शुरू करती है।

महाराजा की बेटी के संघर्ष

जहां एक ओर महाराजा अपने बक्से की खोज में हैं, वहीं दूसरी ओर उनकी बेटी एक खेल शिविर में हिस्सा लेती है। वहां उसे कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जो फिल्म में एक और संघर्ष की कहानी को जोड़ता है।

पहला और दूसरा आधा

फिल्म का पहला हिस्सा महाराजा के जीवन और उसके बक्से के प्रति उसके प्यार को दर्शाता है। इसी दौरान हम उसकी बेटी के संघर्षों और चुनौतियों को भी देखते हैं। फिल्म का दूसरा हिस्सा एक्शन और रोमांच से भरा हुआ है, जिसमें कई मोड़ और उतार-चढ़ाव आते हैं।

अभिनय और पटकथा

फिल्म की पटकथा में कुछ सुधार की जरूरत है, खासकर जहां बात स्क्रीनप्ले की आती है। लेकिन इसके बावजूद, विजय सेतुपति और अन्य कलाकारों ने अपने अभिनय से फिल्म को जीवंत बनाया है। विजय सेतुपति का किरदार महाराजा के रूप में बहुत असरदार है और उनके अभिनय केा सलाम किया जाना चाहिए।

व्यक्तिगत तौर पर, फिल्म का क्लाइमेक्स कुछ हद तक पूर्वानुमानित है, लेकिन फिर भी दर्शकों को अंत तक बांधे रखने में सफल रहता है।

निर्देशन और निर्माण

निर्देशन और निर्माण की बात करें तो फिल्म ने तकनीकी दृष्टि से अच्छा काम किया है। निर्देशन में बारीकी और पात्रों की भावना को दिखाने की कोशिश की गई है। हालांकि, कुछ हिस्सों में पटकथा को और बेहतर बनाया जा सकता था।

भावात्मक अंत

फिल्म का अंत बहुत भावनात्मक है और दर्शकों के दिल को छू जाता है। फिल्म ने न केवल एक दिलचस्प कहानी सुनाई है बल्कि भावनात्मक संबंधों और संघर्षों को भी खूबसूरती से प्रस्तुत किया है।

ंत्र में, 'महाराजा' एक ऐसी फिल्म है जो दर्शकों को मनोरंजन के साथ-साथ एक महत्वपूर्ण संदेश भी देती है। विजय सेतुपति की 50वीं फिल्म ने उनके अभिनय करियर में एक और चमकदार सूरज उगाया है।

5 टिप्पणि

mala Syari
mala Syari
जून 15, 2024 AT 21:59

इस फिल्म में विजय सेतुपति का अभिनय बेहद भावुक है, लेकिन कहानी तो बिल्कुल बेकार है। एक टिन के बक्से को लेकर पूरी फिल्म घुमाना? ये तो बच्चों की कहानी है। मैंने इसे देखकर अपना समय बर्बाद महसूस किया। 😔

Kishore Pandey
Kishore Pandey
जून 17, 2024 AT 18:45

फिल्म की पटकथा में तार्किक असंगतियाँ हैं, जिन्हें निर्देशन द्वारा भी सुधारा नहीं गया। विजय सेतुपति के अभिनय का मूल्यांकन तो अलग बात है, लेकिन एक फिल्म का मुख्य आधार पटकथा होती है। इस फिल्म में संरचनात्मक दुर्बलता स्पष्ट है।

Kamal Gulati
Kamal Gulati
जून 19, 2024 AT 04:18

क्या आपने कभी सोचा है कि एक बक्सा जिसे आपने लक्ष्मी नाम दिया है, वो आपके दिल का हिस्सा बन जाता है? ये फिल्म बताती है कि दुख कैसे अजीब चीजों में बस जाता है। विजय सेतुपति ने बस एक आदमी को नहीं, एक दर्द को अभिनय किया है। ये फिल्म आपको खुद से पूछने पर मजबूर कर देती है कि आपके लिए लक्ष्मी क्या है?

Atanu Pan
Atanu Pan
जून 19, 2024 AT 19:10

महाराजा का बक्सा गायब हुआ तो पुलिस ने तलाशी शुरू कर दी? ये फिल्म है या सामाजिक सेवा अभियान? विजय का अभिनय तो बेहतरीन है पर कहानी तो बिल्कुल फेल है। लेकिन फिर भी देख ली फिल्म क्योंकि उसके बिना मैं अपने जीवन का अर्थ भूल जाता।

Pankaj Sarin
Pankaj Sarin
जून 20, 2024 AT 14:34

अंत में जब बक्सा वापस आया तो मैं रो पड़ा भाई वो बक्सा तो मेरी माँ का बक्सा था जो 1998 में गायब हुआ था

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