केंद्र का बिहार को विशेष राज्य का दर्जा न देने का निर्णय
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने केंद्र सरकार द्वारा बिहार को विशेष राज्य का दर्जा न देने के निर्णय पर संजीदा टिप्पणी की है। यह संदेश उन्होंने संसद में एक प्रश्न के उत्तर में दिया जिसमें केंद्र सरकार के इस संबंध में लिए गए फैसले के बारे में पूछा गया था। नीतीश कुमार ने अपने चिरपरिचित अंदाज में कहा, 'आप सब कुछ धीरे धीरे जान जाईएगा' और एक हल्की मुस्कान के साथ आगे बढ़ गए।
विशेष राज्य के दर्जे की मांग का इतिहास
बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग कोई नई नहीं है। यह मुद्दा लंबे समय से बिहार की राजनीति में एक प्रमुख विषय रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल (यू) भी इस मांग को लेकर लगातार आवाज उठाती रही है। पार्टी ने राष्ट्रीय सम्मेलन में इस मुद्दे पर प्रस्ताव भी पारित किया था और इसे चुनावी एजेंडे में भी शामिल किया था।
राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएँ
नीतीश कुमार के इस टिप्पणी के बाद बिहार की राजनीति में हलचल मच गई है। विपक्षी दलों ने इस पर तीखी प्रतिक्रियाएं दी हैं। राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के प्रमुख और नीतीश कुमार के कट्टर प्रतिद्वंद्वी लालू प्रसाद यादव ने कहा कि बिहार के साथ धोखा हुआ है और नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना चाहिए।
भाजपा का नजरिया
केंद्र सरकार की तरफ से 2012 में एक अंतर-मंत्रालयी समूह की रिपोर्ट का हवाला दिया गया, जिसमें कहा गया था कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने का कोई ठोस आधार नहीं है। यह रिपोर्ट बिहार की वित्तीय स्थिति और विकास संबंधी आकड़ों के आधार पर बनाई गई थी।
जेडीयू और भाजपा की गठबंधन राजनीति
गौरतलब है कि नीतीश कुमार ने इसी साल जनवरी में आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन को छोड़कर भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए में वापसी की थी। इस कदम के बाद से जेडीयू और भाजपा के संबंधों में और मजबूती आने की उम्मीद थी। लेकिन विशेष राज्य के दर्जे का मुद्दा इन संबंधों में एक नया मोड़ ला सकता है।
बिहार का विकास और विशेष राज्य का दर्जा
विशेष राज्य का दर्जा किसी राज्य को उसके विकास में तेजी लाने के लिए दिया जाता है। इससे राज्य को केंद्र से वित्तीय मदद मिलने में आसानी होती है। बिहार के मामले में, विशेष राज्य का दर्जा पाने से राज्य के विकास कार्यों को नई दिशा मिल सकती थी।
नीतीश कुमार का संतुलित रुख
नीतीश कुमार का जवाब चाहे कितना भी संजीदा क्यों न हो, उसमें छिपा संदेश साफ था - वे इस मुद्दे को पूरी तरह से समझ कर और राजनीतिक समीकरणों को ध्यान में रखते हुए आगे की रणनीति तय करेंगे। इस जवाब से यह भी स्पष्ट हुआ कि नीतीश कुमार दबाव में नहीं आएंगे और अपने फैसलों में संतुलन बनाए रखेंगे।
भविष्य की राह
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि जेडीयू और भाजपा के बीच इस मुद्दे पर आगे कैसी राजनीति होती है। क्या नीतीश कुमार अपने राजनीतिक कौशल का इस्तेमाल कर बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने में कामयाब होंगे या यह मुद्दा केवल राजनीतिक बयानबाजियों तक ही सीमित रहेगा।
इस पूरे प्रकरण में बिहार की जनता को भी ध्यान में रखना होगा, जो अपने राज्य के विकास के लिए विशेष राज्य का दर्जा पाने की उम्मीद लगाए बैठी है।
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16 टिप्पणि
बिहार को विशेष राज्य देना है तो पहले ये बताओ कि यहाँ के बीच में कितने लोगों के घर में बिजली आती है और कितने के घर में नल का पानी चलता है ये बताओ फिर बात करते हैं
नीतीश जी का जवाब बिल्कुल सही है। ये सब राजनीतिक नाटक है। जब तक बिहार के लोग अपने बेटों को बर्बाद नहीं करेंगे तब तक कोई विशेष राज्य नहीं बचाएगा।
क्या हमने कभी सोचा है... कि विशेष राज्य का दर्जा, क्या वास्तव में विकास का माध्यम है? या यह तो बस एक भावनात्मक आवाज है, जो हमें अपनी असफलताओं से भागने का एक बहाना बन गया है?
अरे भाई! ये सब तो बस दिखावा है! नीतीश जी अपने दिमाग से बात कर रहे हैं, और लालू जी अपने दिल से! अब बिहार की जनता के दिल और दिमाग का क्या होगा? ये तो बड़ी बात है!
विशेष राज्य का दर्जा एक सांस्कृतिक और आर्थिक अधिकार है, जिसका उपयोग राज्य के विकास के लिए किया जाना चाहिए। इसके लिए नीतिगत दृष्टिकोण आवश्यक है, न कि राजनीतिक नाटक।
ये विशेष राज्य वाला शोर तो बस इसलिए है कि कोई न कोई अपने लिए बजट बढ़ाना चाहता है। बिहार का असली मुद्दा तो ये है कि यहाँ का हर इंसान बाहर भागना चाहता है, कोई यहाँ रहने के लिए तैयार नहीं।
मैं बिहार की एक छात्रा हूँ। हमारे टीचर्स के पास नोटबुक नहीं है, लेकिन विशेष राज्य का दर्जा चाहिए? ये सब तो बस बातें हैं। हमें पहले स्कूल, बुनियादी ढांचा, और शिक्षा चाहिए।
मैंने देखा है कि जब कोई राज्य विशेष राज्य बनता है, तो उसका बजट बढ़ता है, लेकिन वो पैसा कहाँ जाता है? बिहार में तो ये भी नहीं पता कि जो पैसा आता है, उसका आधा हिस्सा किसके जेब में जाता है।
नीतीश कुमार का अंदाज बिल्कुल बिहारी है। धीरे-धीरे जान जाएगा... ये बात तो हर बिहारी ने कभी न कभी कही है। अब देखना है कि ये धीरे-धीरे कब आएगा।
ये सब एक बड़ी साजिश है... भाजपा ने जेडीयू को अपने साथ लाया, अब उन्हें चुनौती दे रहे हैं। ये विशेष राज्य का मुद्दा तो बस एक ट्रैप है! नीतीश जी को फंसाने के लिए बनाया गया है! आप लोग नहीं जानते ये सब क्यों हो रहा है!
विशेष राज्य नहीं, बल्कि विकास की नीति चाहिए। बिहार को बस एक अच्छा शिक्षा और स्वास्थ्य सिस्टम चाहिए। बाकी सब बातें हैं।
क्या आप जानते हैं कि जब बिहार को विशेष राज्य दिया जाएगा तो यहाँ के लोगों को अपने अधिकार मिलेंगे? नहीं! ये सब तो बस एक धोखा है! आप लोग इतने अहंकारी हैं कि सोचते हैं कि आप देश के लिए कुछ कर रहे हैं!
केंद्र की रिपोर्ट के आधार पर बिहार को विशेष राज्य नहीं दिया जा सकता। यह एक आंकड़ों का मुद्दा है, न कि भावनाओं का। बिहार को अपनी अर्थव्यवस्था को सुधारना होगा।
विशेष राज्य देना तो बस देश को कमजोर बनाने का तरीका है! बिहार के लोगों को अपनी मेहनत से आगे बढ़ना चाहिए, न कि दूसरों से भीख मांगना! भारत की ताकत है, बिहार को अपने लिए नहीं, भारत के लिए जागना चाहिए!
ये सब बातें तो बस दिखावा है। बिहार के लोगों को अपने बच्चों को पढ़ाएं, अपने घर साफ रखें, और अपनी ज़िम्मेदारी संभालें। विशेष राज्य नहीं, जिम्मेदारी चाहिए।
विशेष राज्य का दर्जा एक अवसर है, लेकिन यह अवसर तभी काम करता है जब राज्य की शासन व्यवस्था क्षमता और पारदर्शिता उसे पूरी तरह से उपयोग करने के लिए तैयार हो। बिहार को अपने अंदर के दोषों को स्वीकार करना होगा। बिना इसके, कोई विशेष राज्य भी बिहार को बचाने में असमर्थ होगा। यह एक व्यवस्थित, लंबे समय तक चलने वाली प्रक्रिया है, जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचे और नैतिकता का एक समन्वित दृष्टिकोण आवश्यक है। राजनीतिक नाटकों के बजाय, हमें अपने बच्चों के लिए एक अच्छी नींव बनाने की जरूरत है।