Vettaiyan तमिल सिनेमा की एक ऐसी फिल्म है जिसकी प्रतीक्षा दर्शकों ने बहुत समय से की। इसके निर्देशक टीजे ग्नानवेल ने इसे बड़े पैमाने पर बनाने की कोशिश की है, लेकिन इसमें कई ऐसी कमियां हैं जो इसे एक भारी झटका देती हैं। कहानी की शुरुआत होती है सुपरस्टार राजिनikanth द्वारा निभाए गए स्प Athiyan से, जो अपनी एनकाउंटर किलिंग्स के लिए कुख्यात है। यह किरदार एक बेहद चुनौतीपूर्ण मामले में उलझ जाता है, जिसमें ड्रग व्यापार और बाद में एक मर्डर शामिल हैं। यह मामला उसे चेन्नई ले जाता है जहाँ पूरी कहानी का मोड़ होता है।
फिल्म के पहले आधे भाग में आपको एक जबरदस्त रोमांच और सिनेमैटिक अनुभव मिलता है। हालांकि, दूसरी छमाही की कहानी कहीं न कहीं अपनी चमक खोने लगती है। आपने पहले जो उम्मीदें लगाई थीं, वो लगभग पूरी होती दिखती हैं, लेकिन अंततः उनका निचोड़ कमजोर हो जाता है। एक साधारण जातीय कथा जो वास्तविकता के गम्भीर प्रश्न उठाने की कोशिश करती है, उसमें खो जाती है।
राजनीति और नैतिकता के बीच फंसी कहानी
Vettaiyan समाज के दो महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करती है: पुलिस एनकाउंटर किलिंग्स और कोचिंग सेंटरों का धंधा। फिल्म में अमिताभ बच्चन को जज सत्यदेव के रूप में देखा जाता है, जो न्याय और मानव अधिकारों की रक्षा के लिए खड़े रहते हैं। उनका किरदार दर्शकों को सोचने पर मजबूर करता है कि क्या पुलिस को कानून हाथ में लेने का अधिकार है। परंतु यह फिल्म भी इस नैतिक मुद्दे का कोई स्पष्ट समाधान नहीं देती।
कलाकारों का प्रदर्शन
जहां राजिनikanth का आकर्षण अपने चरम पर है, वहीं अन्य कलाकारों जैसे फहद फासिल और राणा दग्गुबाती का इस्तेमाल सीमित दिखता है। उनका योगदान कहीं न कहीं कहानी के भीतर ही खो जाता है। दूसरी ओर, दुशारा विजयन् ने अपने प्रदर्शन से फिल्म को ऊर्जा देने की पूरी कोशिश की है, जो हृदय को छूती है। कामिनी और अभिरामी जैसे पात्र भी अपने छोटे लेकिन प्रभावशाली रोल्स में नजर आते हैं।
फिल्म की कमजोर कड़ी इसके संवाद और पटकथा में दिखाई देती है। कई जगहों पर संवाद इतना साधारण है कि वह राजिनikanth के स्टारडम के स्तर तक नहीं पहुँचता है। दर्शक ज़्यादा टिकिट की उम्मीद करते हैं, लेकिन इस फिल्म में वह थोड़ा निराश होकर लौटते हैं।
संगीत और पृष्ठभूमि संगीत
Anirudh का संगीत और बैकग्राउंड स्कोर फिल्म के उदासीन क्षणों को एक नई दिशा में ले जाता है। कई जगहों पर यह फिल्म के भावोद्वेलन को बढ़ाने का काम करता है। विशेष रूप से कुछ दृश्यों में, संगीत का प्रभाव इतनी अच्छी तरह से मिलाया गया है कि वह दर्शकों के मस्तिष्क में गहराई तक उतर जाता है।
यह फिल्म जो सामाजिक मुद्दे उठाती है, उनका समाधान देने में असफ़ल होती नजर आती है। लेखक और निर्देशक ने इस विशाल अवधारणा की तह तक पहुंचने का प्रयास किया है, परंतु व्यावसायिक दबाव के कारण वे अपनी प्रभावशीलता को खो बैठते हैं। Vettaiyan नगरिक समस्याओं पर आधारित एक अधूरी सी फिल्म है जो अपने विचारधारा में फंस जाती है।
एक टिप्पणी लिखें
आपकी ईमेल आईडी प्रकाशित नहीं की जाएगी.
16 टिप्पणि
इस फिल्म में राजिनीकांत का किरदार बिल्कुल उनके पिछले कामों जैसा है-एक निर्दयी, अनुशासित, और अतिरिक्त रूप से आदर्शवादी पुलिस अधिकारी। लेकिन, यहां तक कि उनकी उपस्थिति भी पटकथा की कमजोरियों को नहीं छिपा सकती। कहानी का दूसरा हिस्सा बिल्कुल फेल हो गया। जब तक आप राजिनीकांत के चेहरे पर नजर नहीं डालते, तब तक आप इसे देख सकते हैं।
ये फिल्म तमिलनाडु की आत्मा को दर्शाती है! जो लोग इसे खराब कह रहे हैं, वो सिर्फ बॉलीवुड के रूढ़िवादी दर्शक हैं। राजिनीकांत का एक ही दृश्य इतना शक्तिशाली है कि ये फिल्म इतिहास बन जाएगी! न्याय के लिए लड़ना गलत क्यों है? जब अपराधी अपने कानून बना लेते हैं, तो राजिनीकांत ही असली कानून हैं!
अगर आप इस फिल्म को बस एक मनोरंजन के रूप में देखें, तो ये एक अद्भुत अनुभव है। अनिरुध का संगीत तो बस जादू है-हर नोट आपके दिल को छू जाता है। और हां, दुशारा विजयन का प्रदर्शन बेहद भावुक है। ये फिल्म बहुत सारे लोगों के लिए एक आत्मीय संदेश है। अगर आप राजिनीकांत को देखने आए हैं, तो आप ये फिल्म नहीं छोड़ सकते।
फिल्म के पहले आधे भाग में निर्देशन और संगीत का समन्वय अद्भुत था। लेकिन दूसरे आधे में, पटकथा ने अपनी दिशा खो दी। एनकाउंटर किलिंग्स और कोचिंग सेंटर्स के मुद्दे को उठाना एक बहुत बड़ा साहसिक कदम था, लेकिन उनका विश्लेषण बहुत सतही रह गया। ये फिल्म एक अच्छा शुरुआती विचार था, लेकिन अंत में व्यावसायिक दबाव के कारण ये एक अधूरी कला बन गई। इस तरह की फिल्मों को अधिक गहराई से निर्मित किया जाना चाहिए।
राजिनीकांत की फिल्में अब सिर्फ फैन्स के लिए हैं। इसमें कोई नया नहीं है-बस उनके गाने, उनके डायलॉग, और उनकी जमाने की बातें। अमिताभ बच्चन का किरदार तो बस एक नकली नैतिकता का नाटक है। ये फिल्म कोई नहीं देखे, बस बॉक्स ऑफिस पर चल गई।
फिल्म के सामाजिक विश्लेषण के तहत एक गहरा सांस्कृतिक विरोधाभास छिपा हुआ है। राजिनीकांत के किरदार का अर्थ एक अनुशासित व्यक्ति के रूप में नहीं, बल्कि एक अस्थायी न्याय के रूप में है। ये एक आधुनिक भारतीय अर्थशास्त्र का प्रतीक है-जहां लोग न्याय के लिए कानून के बजाय एक व्यक्ति को आश्रय देते हैं। इसका अर्थ यह नहीं कि फिल्म सफल है, बल्कि यह कि ये एक अवधारणा का प्रतिबिंब है।
ये फिल्म सिर्फ राजिनीकांत के बारे में नहीं है, ये एक बड़ा गुप्त साजिश है। जानते हो? ये सब एक बड़े बिजनेस ग्रुप के लिए एक धोखा है जो लोगों को एनकाउंटर्स को सही साबित करना चाहता है। अमिताभ का किरदार तो एक गुप्त एजेंट है जो न्याय का नाटक कर रहा है। 😈
इस फिल्म ने मुझे ये सोचने पर मजबूर कर दिया-क्या न्याय वास्तव में कानून के बाहर हो सकता है? क्या एक व्यक्ति अपने आप को न्याय का प्रतीक बना सकता है? ये फिल्म उत्तर नहीं देती, लेकिन ये सवाल उठाती है। और शायद यही इसकी सबसे बड़ी शक्ति है।
मैंने ये फिल्म देखी और बहुत अच्छा लगा। राजिनीकांत के दृश्य तो बस दिल छू गए। अगर आप इसे बहुत गहराई से लें, तो ये एक दर्द भरी कहानी है-एक आदमी जो अपने दिल के अनुसार चलता है, और उसके लिए दुनिया उसे दोषी ठहराती है। अगर आप इसे बस एक एक्शन फिल्म समझें, तो आप इसकी गहराई नहीं देख पाएंगे।
अनिरुध का बैकग्राउंड स्कोर फिल्म का सबसे मजबूत पहलू है। शेष चीजें बहुत अस्थिर हैं।
राजिनीकांत की फिल्मों में एक अजीब अद्भुतता होती है-वो तो अपने आप में एक घटना हैं। ये फिल्म भी उसी श्रृंखला का हिस्सा है। इसमें कमियां हैं, लेकिन इसे देखने का मजा अलग है।
ये फिल्म बिल्कुल बेकार है। राजिनीकांत के दर्शकों को बस अपने अहंकार के लिए इसे देखना पड़ता है। अमिताभ का किरदार बिल्कुल फेक है। ये फिल्म बॉलीवुड के बहुत बड़े झूठ का प्रतीक है।
अरे यार, ये फिल्म तो सिर्फ राजिनीकांत के लिए बनाई गई है! बाकी सब बेकार है। 😂
ये फिल्म भारतीय संस्कृति के खिलाफ है। एक व्यक्ति को अपराधी के खिलाफ न्याय देने का अधिकार नहीं होता। राजिनीकांत का किरदार एक आतंकवादी है। ये फिल्म भारत के लिए बहुत खतरनाक है।
ये फिल्म तो बस राजिनीकांत का फैन फिल्म है... अनिरुध का संगीत तो बहुत अच्छा है... बाकी सब बकवास 😴
अगर आप इस फिल्म को एक अपराध कथा के रूप में नहीं, बल्कि एक सामाजिक परीक्षण के रूप में देखें, तो ये एक अच्छा अवसर है। राजिनीकांत का किरदार एक विश्वास है-कि अगर कानून असफल हो जाए, तो क्या एक व्यक्ति को न्याय देने का अधिकार होना चाहिए? ये सवाल अभी भी बाकी है।